''सर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं | जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उडुगन भ्राजहीं || भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कण तन अति बने | जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं बिपुल सुख आपने ||'' [रामचरितमानस,लंकाकांड] ~~~ विजया दशमी पर्व पर ~~~~~~ सपरिवार शुभकामना ~~~~~~~~~ स्वीकार करें !!!!!!!!!! >ऋषभ rishabha.wordpress.com http://rishabhuvach.blogspot.com rishabha.wikispaces.com http://hindibharat.blogspot.com 360.yahoo.com/rishabhadeosharma 360.yahoo.com/ramayansandarshan http://rishabhadeosharma.spaces.live.com |
1 टिप्पणी:
विजयदशमी की समस्त परिजनों को शुभकामनाएं सरजी॥
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