हैदराबाद, 1 सितंबर 2009 (प्रेस विज्ञप्ति)।
‘‘समाज और विचार के केंद्र में स्त्री का आना हमारे समय की एक बड़ी परिघटना है जो ऐसे सामाजिक परिवर्तन की पूर्वसूचना है जिसमें पितृसत्तात्मक व्यवस्था द्वारा निर्मित परंपरागत स्त्री संहिता की तथाकथित मर्यादाएँ तड़तड़ाकर टूट रही हैं और स्त्री अस्मिता स्वयं को सशक्त रूप में अभिव्यक्त कर रही है।’’
ये विचार मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के एकाडेमिक स्टाफ कालिज में हिंदी प्राध्यापकों के निमित्त ‘विविध विमर्श’ केंद्रित पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में आज उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने ‘‘स्त्री विमर्श और साहित्य’’ विषयक व्याख्यानमाला के अंतर्गत बोलते हुए व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि स्त्री विमर्श के भारतीय संदर्भ को सिमौन द बोउवार और केट मिलेट जैसी पश्चिमी लेखिकाओं की अपेक्षा महादेवी वर्मा की स्थापनाओं की सहायता से बेहतर ढंग से व्याख्यायित किया जा सकता है।
डॉ. शर्मा ने लगभग 25 कम्प्यूटूर-स्लाइडों की सहायता से विषय की प्रस्तुति को रोचक बनाते हुए स्त्रीत्ववादी विमर्श के इतिहास, स्त्रीवाद की मान्यताओं, स्त्रीलेखन और स्त्री भाषा के वैशिष्ट्य तथा साहित्य के स्त्रीपाठ के प्रतिमानों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए और कहा कि सार्वजनिक जीवन में आत्मनिर्भर स्त्री की सार्थक और रचनात्मक भूमिका द्वारा ही स्त्री विमर्श परिपूर्णता प्राप्त कर सकता है।
आरंभ में मानविकी संकाय के डीन प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी ने अतिथि वक्ता का परिचय दिया। चर्चा परिचर्चा के उपरांत डॉ. रत्नाकर के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ व्याख्यानमाला का समापन हुआ।
1 टिप्पणी:
"डॉ. शर्मा ने लगभग 25 कम्प्यूटूर-स्लाइडों की सहायता से विषय की प्रस्तुति को रोचक बनाते हुए ....
स्त्रीविमर्श और दलित विमर्श इस युग की देन कही जा सकती हैं और इन पर आधुनिक दृष्टि आधुनिक उपकरणों के माध्यम से समझाना श्रोताओं को अधिक ग्राह्य होता है। बधाई ।
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