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रविवार, 25 मार्च 2012

एलुरु में पुस्तक लोकार्पण और युगादि कवि सम्मलेन : चित्रावली

तेलुगु नाटक 'अक्षरम्' के हिंदी अनुवाद को लोकार्पित करते हुए  ऋषभ 

'अक्षरम्' के लोकार्पण के अवसर पर ऋषभ का अभिनंदन 

बीएसएनएल  के 'तेलुगु हिंदी कवि सम्मलेन' के अवसर पर अभिनंदन स्वीकारते हुए ऋषभ 

शनिवार, 24 मार्च 2012

एलुरु में पुस्तक लोकार्पण और युगादि कवि सम्मलेन

22 मार्च 2012 को पश्चिम गोदावरी [आंध्र प्रदेश] के जनपद मुख्यालय एलुरु जाना हुआ. ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्त्व का शहर. गाँधी जी के नमक आंदोलन  में यहाँ के नागरिकों ने इतना बढ़ चढ कर हिस्सा लिया था कि लोग इसे तमिलनाडु के वेलुरु से अलग पहचानने के लिए नमक-वेलुरु कहने लगे. वैसे एलुरु का एक अर्थ सप्त-सरिता निकलता है जो इस तथ्य का द्योतक है कि कभी यहाँ सात नदियाँ बहती थीं. अब भी गोदावरी और कृष्णा द्वारा सिंचित इस क्षेत्र को आंध्र के चावल का कटोरा कहकर मान दिया जाता है.

हिंदी प्रचार आंदोलन में भी एलुरु का स्थान महत्वपूर्ण है. गाँधी जी द्वारा दीक्षित हिंदी प्रचारकों ने उनकी चरणधूलि से पावन स्थल पर हिंदी विद्यालय की स्थापना की. पी सत्यनारायण, वेमूरि आंजनेय शर्मा और शीर्ल ब्रह्मय्या जैसे पुरोधा हिंदी प्रचारकों के इस कर्मक्षेत्र में जाने का अवसर मुझे बीएसएनएल के राजभाषा अधिकारी बी. विश्वनाथाचारी के आग्रहवश अनायास ही मिल गया. 

बी. विश्वनाथाचारी ने नंदिराजू सुब्बाराव कृत तेलुगु नाटक 'अक्षरम' का 'अक्षर' शीर्षक से हिंदी में अनुवाद किया है - प्रकाशित किया है. उनकी जिद थी कि लोकार्पण मेरे हाथों हो.  अपने युवा लेखक मित्र  पेरिसेट्टी श्रीनिवास राव ने यात्रा की जिम्मेदारी ले ली तो मैं साथ हो लिया. स्लीपर बस में खाली पेट खूब हिलना-डुलना हुआ; पर यात्रा दोनों ओर की ठीक-ठाक  ही रही. एलुरु में  पारंपरिक ढंग से स्वागत-सत्कार और अभिनंदन हुआ - दो दो बार. मैं तो बड़े संकोच में पड़ गया. दरअसल सवेरे तो पुस्तक-लोकार्पण का कार्यक्रम रहा ही; शाम को बीएसएनएल में तेलुगु-हिंदी कवि-सम्मलेन का भी आयोजन हुआ. युगादि पर्व की पूर्व वेला होने के कारण युगादि पर ही कविताएँ पढ़ी गईं. संयोगवश मैंने पिछले ही दिन इस स्थिति का पूर्वानुमान कर कुछ तुकबंदी कर डाली थी - उसने इज्ज़त बचा ली.  

आचार्य जी और राजा राव जी ने वापसी की बस पकड़ने से पहले दो मंदिरों में दर्शन भी करा दिए. दतात्रेय मंदिर और लघु तिरुपति मंदिर. बहुत अच्छा लगा. साहित्ययात्रा तीर्थयात्रा भी बन गई. दोनों ही मंदिर भव्य भी हैं और शांतिमय भी. और हाँ मंदिर के सामने पार्क में यों तो निर्जल उपवास करते मगरमच्छ महाशय व महाकच्छप महोदय ने भी ध्यान खींचा पर फोटो हमने भगवान बुद्ध की ही प्रतिमा के सामने खिंचवाई.

 मित्रों का यह  निश्छल आतिथ्य सदा याद रहेगा! 

सोमवार, 19 मार्च 2012

हिंदी : भविष्य : प्रौद्योगिकी

सरस्वती-दीप प्रज्वलित किया प्रो. सुनयना सिंह ने.
आंध्र प्रदेश में चैत्री नवरात्र के आरंभ के साथ नव-संवत्सर भी आरंभ होता है. उस दिन युगादि पर्व मनाया जाता है. इस अवसर पर अन्य समस्त लोकाचार के अलावा एक परंपरा पंचांग दिखाने और भविष्यफल श्रवण की भी है. इस बार यह पर्व 23 मार्च 2012, शुक्रवार को पड़ रहा है.

यह मनोरंजक रहा कि युगादि पर्व के सप्ताह भर पूर्व केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद ने हिंदी के भविष्यफल श्रवण का आयोजन समारोहपूर्वक रिलायंस फ्रेश के ऊपर ग्रांड सीज़न होटल के सभाकक्ष में कर डाला. अजी हमारा कहने का मतलब है कि 17 मार्च 2012 को संस्थान ने स्वर्ण जयंती वर्ष के कार्यक्रमों की शृंखला में ''हिंदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी'' विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता केहिस, आगरा के निदेशक प्रो. मोहन ने की - सुलझे हुए विद्वान हैं और बहुत सहज लहजे में बोलते हैं जैसे बतियाते हुए. बीज व्याख्यान उस्मानिया विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग की अध्यक्ष प्रो. सुनयना सिंह ने दिया - जिसे शुभ संकेत माना जा सकता है.स्वागत सत्कार प्रो. शकुंतला रेड्डी ने किया.

प्रथम विचार सत्र में डॉ राज्यलक्ष्मी, डॉ.एम वेंकटेश्वर,
डॉ. आर एस सर्राजू, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. श्री
और डॉ. हेमराज मीणा 


दो सत्रों में दर्ज़न भर पर्चे पढ़े गए. प्रो.आर एस सर्राजु, प्रो. एम वेंकटेश्वर, प्रो. पी माणिक्याम्बा, प्रो. शुभदा वांजपे, प्रो. हेमराज मीणा, प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी,प्रो. वी कृष्णा,  डॉ.अनीता गांगुली, डॉ. रामनिवास साहू, डॉ. चंद्रा मुखर्जी, डॉ. अर्चना झा, डॉ. राज्यलक्ष्मी, डॉ. श्री आदि के साथ हमें भी भविष्य-कथन का अवसर मिला.
मौका अच्छा था , हमने प्रथम वक्ता के रूप में माइक हथिया कर ''हिंदी : भविष्य : प्रौद्योगिकी'' शीर्षक से प्रश्न-कुंडली बनाकर हिंदी का भविष्य बताया और भविष्य की हिंदी के बारे में भी भविष्यवाणी की.

तो 25 मिनट तक हमने क्या-क्या कहा उसे फिलहाल भविष्य के लिए सुरक्षित रखते हैं; अभी आप केवल भविष्यफल श्रवण/वाचन कर लें.

अथ ऋषभ उवाच-

[अ] हिंदी का भविष्य -
1. हिंदी और उसका भविष्य इस शती में बाज़ार और प्रौद्योगिकी/तकनीक के बल पर सुरक्षित है और रहेगा.
2. हिंदी अब अंग्रेजी के रास्ते पर है अर्थात अंग्रेज़ी के साथ ग्लोबल भाषा के रूप में स्वयं को सिद्ध करने वाली है.
3. आने वाले समय में हिंदी पूरी तरह अक्षेत्रीय भाषा के रूप में उभरेगी.
4. हिंदी पर से तथाकथित हिंदी-बैल्ट का वर्चस्व लगातार घटेगा.
 और
5. भविष्य में हिंदी सबकी साझी हिंदी होगी - किसी इस या उस वर्ग, क्षेत्र , जाति, धर्म या संप्रदाय की नहीं.

[आ] भविष्य की हिंदी [का स्वरूप] - 
1. बाज़ार के दबाव और विज्ञापन के प्रभाव के कारण हिंदी-व्याकरण के नियम टूटेंगे और भाषा का लचीलापन बढ़ेगा.
2. देशज शब्दों का प्रयोग बढ़ेगा क्योंकि उनके माध्यम से अधिक बड़ी जनसँख्या को संबोधित करना संभव होगा.
3. बिंदास शब्दावली की सार्वजनिक रूप से स्वीकृति बढ़ेगी.
4. अभी तक व्यक्तिगत संबंधों मेंजो भाषा की शालीनता और सामाजिक नैतिकता है , वह भी टूटेगी.
5. हिंदी के विभिन्न रूप क्षेत्रवार विकसित और स्वीकृत होंगे तथा पिजिनीकरण और कोड मिश्रण/परिवर्तन के बढ़ने के साथ हिंदी का बचा-खुचा पंडिताऊपन टूट जाएगा.
6. साहित्य में भी ये सारी चीज़ें आएंगी और एक ही कृति में विविध भाषा रूपों के प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ेगी.
7. भविष्य की हिंदी के स्वरुप निर्धारण में सोशल नेटवर्किंग साइटों की प्रभावी भूमिका होगी तथा हिंदी में शब्दों के संक्षेपीकरण की प्रवृत्ति और सीमित शब्दों में संप्रेषण के कौशल का विकास होगा.

शनिवार, 17 मार्च 2012

दक्षिण भारत में हिन्दी के अध्ययन–अध्यापन की समस्याओं पर राष्ट्रीय कार्यशाला


उद्घाटनकर्ता प्रो.दिलीप सिंह का स्वागत सत्कार 
 हैदराबाद, 17 मार्च, 2012.
(रिपोर्ट - डॉ. आलोक पाण्डेय)
हिन्दी विभाग, मानविकी संकाय हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और महेश बैंक, हैदराबाद के सहयोग से “ दक्षिण भारत में हिन्दी के अध्ययन–अध्यापन की समस्याएं ” पर आयोजित त्रि दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला ( 14-16  मार्च) का समापन मुख्य अतिथि श्री रमेश कुमार बंग और प्रति कुलपति प्र. ई हरिबाबू द्वारा कल दिनांक 16 मार्च को संपन्न हुआ. श्री रमेश कुमार बंग जी ने इस कार्यशाला के सकुशल संपन्न होने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए महेश बैंक के इस प्रकार के राष्ट्रीय महत्त्व के सरोकारों और अपने हिन्दी प्रेम से श्रोताओं को अवगत कराया.

संगोष्ठी निदेशक डा.आलोक पाण्डेय : उद्देश्य कथन 
६ सत्रों में विभाजित इस कार्यशाला का उदघाटन दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा चेन्नई के कुलसचिव प्रो. दिलीप सिंह  और  मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राम जी तिवारी ने संयुक्त रूप से मानविकी संकाय के डीन प्रो. मोहन जी रमनन की अध्यक्षता में १४ मार्च को किया था. इस कार्यक्रम में स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद की तरफ से डॉ विष्णु भगवान जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे. ६ सत्रों में विभाजित इस कार्यशाला में पूरे देश से लगभग ६० विद्वतजनों - जिनमें चेन्नई से दिलीप सिंह और मधु धवन, रांची से ध्रुव तननानी, मुंबई से राम जी तिवारी, कांचीपुरम से नागेश्वर राव, अमरावती से ज्योति व्यास, गुलबर्गा से मैत्री ठाकुर हैदराबाद से एम वेंकटेश्वर ,  विष्णु भगवान् , टी मोहन सिंह, माणिक्य अम्बा , शीला मिश्र, शुभदा बांजपे, एफ एम सलीम, जे आत्मा राम,करण सिंह ऊटवाल, रहीम खां, हेमराज दिवाकर, रेखा रानी, जी नीरजा, मृत्युन्जय सिंह, गोरखनाथ तिवारी आदि अनेक विद्वानों, अध्यापकों और शोधार्थियों ने भाग लिया और अपने प्रपत्र पढ़े.  

दूसरे दिन का पहला सत्र : स्त्री सत्ता !

राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए वरिष्ठ भाषावैज्ञानिक  प्रो. दिलीप सिंह ने दक्षिण भारत में स्कूल स्तर से हिन्दी की समस्या के निदान पर  बल दिया. बीज व्याख्यान  देते हुए प्रो राम जी तिवारी ने हिन्दी के प्राथमिक  शिक्षण को मजबूत करने की आवश्यकता बतायी. डॉ विष्णु भगवान ने भाषा की सम्पूर्ण जानकारी के अभाव में गलत अनुवाद की समस्या पर बल देते हुए कहा कि भाषा की समस्याओं को दूर कर के ही अच्छा अनुवादक बना जा सकता है . प्रो ऋषभदेव  शर्मा ने शिक्षकों की  जवाबदेही पर बात की. 

डा.पी.मानिक्याम्बा : वक्तव्य 




कार्यशाला के समापन सत्र में बोलते हुए प्रति कुलपति प्रो. ई . हरिबाबू  ने  त्रिभाषा  प्रणाली की उपयोगिता को रेखांकित किया . अंत में कार्यशाला के उपनिदेशक डॉ एम आन्ज्नेयुलू ने संगोष्ठी रपट प्रस्तुत की और कार्यशाला  के निदेशक  डॉ आलोक पांडेय ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए, विशेष रूप से महेश बैंक के चेयरमैन रमेश कुमार बंग  और स्टेट बैंक हैदराबाद के डॉ विष्णु भगवान को, उनके बैंक की तरफ से आर्थिक  सहयोग  प्रदान करने के लिए विशेष धन्यवाद  दिया.

तीसरे दिन का पहला सत्र : प्रो.ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षीय टिप्पणी  

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

'भाषा, संस्कृति और लोक' : संपादक - प्रो. दिलीप सिंह

दो महीने से प्रतीक्षा थी इस किताब की. कल जब प्रो. दिलीप सिंह ने ज़िक्र छिड़ने पर औचक ही बैग  से प्रति निकाल कर दिखाई तो मेरा उछलना स्वाभाविक था. 'पं. विद्यानिवास मिश्र स्मृति ग्रंथमाला' [प्रधान संपादक डॉ. दयानिधि मिश्र] के अंतर्गत प्रो. दिलीप सिंह के संपादन में यह पहली किताब आई है. अत्यंत भावुकता और श्रद्धा के साथ उन्होंने सम्पादकीय में लिखा है - मुझे बराबर यह लगता रहा कि उनके अकादमिक व्यक्तित्व को जो भी अर्पित किया जाए वह उनकी विराटता के सामने अपनी लघुता ही प्रकट कर पाएगा.

प्रो. सिंह ने इस कृति ''भाषा, संस्कृति और लोक'' को ''भाषाविज्ञान की व्यावहारिक पीठिका'' उपशीर्षक दिया है जो इसकी विषयवस्तु की स्वतःघोषणा है. पंडित जी के प्रिय क्षेत्रों को ध्यान में रखकर यहाँ सात खण्डों में बीस लेखकों के चौबीस चिंतनपूर्ण आलेख संजोए गए हैं. स्वयं पं. विद्यानिवास मिश्र के ''भारतीय भाषादर्शन की पीठिका'' तथा प्रो. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव  के ''आधुनिक भाषाविज्ञान और भारतीय भाषाचिंतन'' , ''भाषिक प्रतीकों की प्रकृति'' और ''धूप की छाँव में : पं. विद्यानिवास मिश्र'' जैसे दस्तावेजी आलेख इस कृति की धुरी हैं जिसके गिर्द अत्यंत विवेकपूर्वक भाषा, संस्कृति एवं लोक विषयक सारी सामग्री को इस तरह संजोया गया है कि पाठक को अपने आप यह बोध होने लगता है कि यह सब मानो पंडित जी के ही विचारलोक का स्वाभाविक विस्तार है - संपादक ने सप्रमाण यह दर्शाया भी है.

इन  सम्मिलित लेखकों में  हैं - प्रो. सुरेश कुमार , डॉ. हीरालाल बाछोतिया, प्रो. कैलाश चंद्र भाटिया, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. सूरज भान सिंह, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. ऋषभ देव शर्मा, डॉ.पियूष कुमार श्रीवास्तव, डॉ. कविता वाचकनवी , प्रो. चतुर्भुज सही, प्रो. जगदीश प्रसाद डिमरी, प्रो. भारत सिंह, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. देव शंकर नवीन, डॉ.अंजू श्रीवास्तव, प्रो. देवराज, प्रो. एम.वेंकटेश्वर एवं प्रो. दिलीप सिंह. 

निस्संदेह 'आधुनिक भाषावैज्ञानिक चिंतन के व्यावहारिक पक्ष को यह किताब जगह-जगह विश्लेषणात्मक पद्धति को अपनाते हुए उजागर करती है. वैचारिक स्तर पर पुस्तक पठनीय है तो आत्मीय धरातल पर पंडित जी के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि!' 

भाषा,संस्कृति और लोक 
प्रधान संपादक - डॉ. दयानिधि मिश्र
संपादक प्रो. दिलीप सिंह 
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली 110002
2012 - प्रथम संस्करण 
204 पृष्ठ - सजिल्द
400 /=

मंगलवार, 13 मार्च 2012

''आधुनिक हिंदी काव्य का इतिहास'' _व्याख्यानमाला संपन्न



हैदराबाद, १३ मार्च, २०१२.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा द्वारा संचालित उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के तत्वावधान में यहाँ स्नातकोत्तर छात्रों के निमित्त  ''आधुनिक हिंदी काव्य का इतिहास'' विषयक दो-दिवसीय व्याख्यानमाला सोमवार और मंगलवार को आयोजित की गई. चार सत्रों में संपन्न इस आयोजन की अध्यक्षता प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने की. 


अतिथि वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए उस्मानिया विश्वविद्यालय और इफ्लु से संबद्ध रहे प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने साहित्येतिहास  दर्शन पर प्रकाश डाला और  विस्तार से भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावादी और उत्तर-छायावादी हिंदी कविता की प्रवृत्तियों, उपलब्धियों और सीमाओं का तत्-तत् कालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों के संदर्भ में गंभीर  विवेचन किया.


आरंभ में डॉ. साहिरा बानू ने अतिथि वक्ता का परिचय दिया तथा बाद में डॉ.गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ. गोरखनाथ तिवारी , डॉ.मृत्युंजय सिंह और शोधार्थियों ने टिप्पणियाँ की. परवीन सुल्ताना ने धन्यवाद प्रकट किया. [प्रस्तुति : गुर्रमकोंडा नीरजा]

शनिवार, 10 मार्च 2012

धारवाड में दूरस्थ शिक्षा का प्रशिक्षण शिविर


इधर कई वर्षों से जनवरी से लेकर मार्च तक इतनी संगोष्ठियों आदि में जाना पड़ रहा है कि कभी-कभी तो लगता है जैसे अपने छात्रों और शोधार्थियों के साथ अन्याय न हो जाय - इस अपराधबोध से बचने के लिए उन्हें अतिरिक्त समय देना भी मानो रूटीन बन गया है. लेकिन इन संगोष्ठियों को छोड़ा भी तो नहीं जा सकता - इसी बहाने अपनी कुछ मंजाई का मौका मिलता है. अभी पिछले दिनों कष्टकर बस-यात्रा के बावजूद धारवाड और  बीजापुर की राष्ट्रीय संगोष्ठियां इस लिहाज़ से खूब फलदायी रहीं. 

धारवाड में तो दो दिन (27-28 फ़रवरी, 2012) में आठ सत्रों में दूरस्थ माध्यम की शिक्षा पर लगभग प्रशिक्षण शिविर ही हो गया. फ्लाइटें कैंसिल होने के कारण कई विद्वान आ नहीं सके , लेकिन प्रो. दिलीप सिंह जी और प्रो. एम. वेंकटेश्वर जी ने प्रत्येक सत्र को अपने सटीक हस्तक्षेप से इतना परिपूर्ण बना दिया कि किसी की कमी कतई नहीं खटकी. 


बुधवार, 7 मार्च 2012

होली है पर्याय रंग का - रँगें और रंग जाएँ हम

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कलम कारखाने में कई कलमची आए थे. 
संपत देवी मुरारका जी बोलीं - मेरे घर एक गोष्ठी रख लीजिए न. 
बस हो गई होली की पूर्व संध्या रंगारंग. 
अपुन की अध्यक्षता में कविताएं भी बरसीं और रंग भी खूब बरसा. 
महिलाएं तो वहीं वृन्दावन उतारने पर उतारू हो गईं. 
डॉ हीरालाल बाछोतिया, डॉ रामजन्म शर्मा, डॉ मीता शर्मा और डॉ हेमराज मीणा इस अनोखे सम्मान से गद्गद हुए.


धुआँ और गुलाल / ऋषभ देव शर्मा

सिर पर धरे धुएँ की गठरी
मुँह पर मले गुलाल
चले हम
धोने रंज मलाल !

होली है पर्याय खुशी का
खुलें
और
खिल जाएँ हम;
होली है पर्याय नशे का -
पिएँ
और
भर जाएँ हम;
होली है पर्याय रंग का -
रँगें
और
रंग जाएँ हम;
होली है पर्याय प्रेम का -
मिलें
और
खो जाएँ हम;
होली है पर्याय क्षमा का -
घुलें
और
धुल जाएँ गम !

मन के घाव
सभी भर जाएँ,
मिटें द्वेष जंजाल;
चले हम
धोने रंज मलाल !

होली है उल्लास
हास से भरी ठिठोली,
होली ही है रास
और है वंशी होली
होली स्वयम् मिठास
प्रेम की गाली है,
पके चने के खेत
गेहुँ की बाली है
सरसों के पीले सर में
लहरी हरियाली है,
यह रात पूर्णिमा वाली
पगली
मतवाली है।

मादकता में सब डूबें
नाचें
गलबहियाँ डालें;
तुम रहो न राजा
राजा
मैं आज नहीं कंगाल;
चले हम
धोने रंज मलाल !

गाली दे तुम हँसो
और मैं तुमको गले लगाऊँ,
अभी कृष्ण मैं बनूँ
और फिर राधा भी बन जाऊँ;
पल में शिव-शंकर बन जाएँ
पल में भूत मंडली हो!

ढोल बजें,
थिरकें नट-नागर,
जनगण करें धमाल;
चले हम
धोने रंज मलाल !

रविवार, 4 मार्च 2012

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में दूरस्थ शिक्षा कार्यशाला उद्घाटित

हैदराबाद, 4 मार्च, 2012.

आज यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में चार दिवसीय दूरस्थ शिक्षा संबंधी पाठ्यक्रम संशोधन कार्यशाला का उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ. समारोह की अध्यक्षता करते हुए ‘स्वतंत्र वार्ता’ के संपादक डा.राधेश्याम शुक्ल कहा कि वर्तमान युग में शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका है. उन्होंने याद दिलाया कि प्राचीन भारत में विद्यार्थी पूर्णकालिक छात्र के रूप में गुरुकुल में जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे जबकि आधुनिक युग में शिक्षा संस्थाओं की स्थापना होने पर उन्हें विद्यालयी शिक्षा की सुविधा प्राप्त हुई. इससे आगे बढ़कर दूरस्थ माध्यम ने यह बीड़ा उठाया कि शिक्षा को स्वयं छात्र के दरवाजे पर पहुंचाया जाए. डा.शुक्ल ने कहा कि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ने एक सीमा तक हिंदी प्रचार के लिए आरंभ से ही यह तरीका अपनाया तथा अब इक्कीसवीं सदी में यह संस्था दूरस्थ माध्यम द्वारा विभिन्न विषयों की शिक्षा के प्रसार में तेजी से अग्रसर है. उन्होंने सभा के विभिन्न पाठ्यक्रमों की पाठ सामग्री की स्तरीयता और गुणवत्ता की प्रशंसा करते हुए कहा कि तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक़ इसे अद्यतन करना वास्तव में सराहनीय कदम है.

वर्धमान महावीर मुक्त विश्वविद्यालय, कोटा से पधारी डा.मीता शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है और पाठ्यक्रम तथा पाठ सामग्री का निर्माण और संशोधन भी एक निरंतर चलता रहने वाला काम है जिसके सहारे हम बदलते हुए समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाते हैं. उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं और बोलियों के लोकसाहित्य के अध्ययन की आवश्यकता बताते हुए कहा कि ऐसा करके हम भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को अपने छात्रों के मानस में स्थापित कर सकते हैं. नए विमर्शों, मीडिया और सिनेमा को भी विभिन्न स्तरों पर पाठ्यक्रम से जोड़ने की बात डा.मीता शर्मा ने कही.

विशेष अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के प्रो.जे.पी.डिमरी ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में रूसी भाषा संबंधी अपने व्यापक अनुभव की चर्चा करते हुए सुझाव दिया कि पाठ सामग्री को नियमित अंतराल पर खंगालते रहना और प्रश्नावली को बदलते रहना दूरस्थ माध्यम की शिक्षा प्रणाली की जीवंतता के लिए जरूरी है. उन्होंने वस्तुनिष्ठ और बहुविकल्पी प्रश्नों के सहारे विद्यार्थी के ज्ञान और कौशल की परीक्षा के तरीकों पर भी चर्चा की.

आरंभ में आंध्र सभा के सचिव डा.पी.ए.राधाकृष्णन ने अतिथियों का भावभीना स्वागत किया और प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने कार्यशाला के प्रयोजन पर प्रकाश डाला. चार दिन की इस कार्यशाला में विशेषज्ञ विद्वानों के रूप में भाग ले रहे डा.हीरालाल बाछोतिया, डा,रामजन्म शर्मा, डा.एम.वेंकटेश्वर, डा.शकीला खानम, डा.पी.राधिका, डा.एम.एम.मंगोडी, डा.जी.नीरजा, डा.संजय मादार, डा.मृत्युंजय सिंह, डा.प्रवीणा बाई, डा.साहिरा बानू, डा.रामनिवास साहू और डा.मंजुनाथ अम्बिग के अतिरिक्त डा.गोरखनाथ तिवारी, डा.बी.सत्यनाराण, संपत देवी मुरारका, डा.अहिल्या मिश्र, डा.लक्ष्मीकान्तं, वी.कृष्णाराव, संतोष काम्बले, ए.जी.श्रीराम, प्रमोद, अलीखान, गणपत राव, जखिया परवीन, के.नागेश्वर् राव, सुरेश कुमार, रामकृष्ण, बलराम, मुरली, केशव, शिवकुमार, कदीर, लेस्ली तथा संस्थान के विभिन्न विभागों के अध्यापकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. कार्यक्रम का संचालन दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक डा.पेरिशेटटी श्रीनिवास राव ने किया.