हैदराबाद, २० फ़रवरी २०१० :
'हिंदी भारत' चर्चा समूह के चिंतनशील वरिष्ठ सदस्य चंद्रमौलेश्वर प्रसाद, अनूप भार्गव, अनिल जनविजय और सत्यनारायण शर्मा 'कमल' ने 'स्वतंत्र वार्ता' के संपादक राधश्याम शुक्ल के आलेख 'राज्य बहुसंस्कृतिवाद की विफलता पर छिड़ी बहस' पर गत सप्ताह जो बहु-आयामी विचार-विमर्श किया, उसे 'स्वतंत्र वार्ता' ने आज सम्मानपूर्वक प्रकाशित किया है. वैसे विमर्श अभी चालू है; और स्वयं डॉ.राधेश्याम शुक्ल का एक और आलेख (पिछले आलेख की शृंखला में) सामने आया है. उसे भी देखा जाएगा. लेकिन पहले इसे देखते चलें.........
3 टिप्पणियां:
इस चर्चा को सार्थक समझा जाएगा जब और अधिक सदस्य ऐसी जवल्न्त समस्यों पर सक्रियता से भाग लें। शायद इससे आम आदमी को ज़बान मिले :) आपका आभार कि आपने इस मुद्दे पर चल रही बहस को डॊ. शुक्ला जी तक पहुंचाया और चर्चा को विस्तार दिया।
नमस्ते सर ,
लेख पढ़ कर अच्छा लगा .
समस्या ज्वलंत है, चर्चा की सार्थकता उसके होने में है।
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