निस्संदेह सामान्य नागरिक के लिए हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं. ईमानदारी को बेवकूफी माना जा रहा है. सरकारें जनता के लिए नहीं बाज़ार की ताकतों के लिए प्रतिबद्ध होती दीखती हैं. पानी अगर सिर से ऊपर जाएगा तो बदलाव की पुकार उठेगी ही.
कुछ भी कहिए, लेकिन संयोजक ने एक अच्छी शुरूआत तो की है न!
लोगों , खासकर पढ़ेलिखों ने देश और समाज की वास्तविक समस्याओं पर बोलना छोड़ दिया है. इससे यथास्थितिवाद और अनुत्तरदायित्व की भावना का प्रसार होता है. चुप्पी का बर्फ कुछ तो टूटे .
रही बात आपकी इंटेलेक्चुअलता की, तो हताश न हों, आप नहीं तो आपके प्रतिनिधि वहाँ थे.[कभी कभी ऐसा भी होता है.]
वैसे इस शब्द में ''ईंट ले के चल'' की भी ध्वनि सुनाई पड़ती है!
4 टिप्पणियां:
हर ईंट को उठना होगा।
जहां इंटलेक्चुअल हों, हमारा क्या काम :)
लगता है अब भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हर ओर से बिगुल बजने लगा है।
@प्रवीण पाण्डेय
निस्संदेह सामान्य नागरिक के लिए हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं. ईमानदारी को बेवकूफी माना जा रहा है. सरकारें जनता के लिए नहीं बाज़ार की ताकतों के लिए प्रतिबद्ध होती दीखती हैं. पानी अगर सिर से ऊपर जाएगा तो बदलाव की पुकार उठेगी ही.
@cmpershad
कुछ भी कहिए, लेकिन संयोजक ने एक अच्छी शुरूआत तो की है न!
लोगों , खासकर पढ़ेलिखों ने देश और समाज की वास्तविक समस्याओं पर बोलना छोड़ दिया है. इससे यथास्थितिवाद और अनुत्तरदायित्व की भावना का प्रसार होता है. चुप्पी का बर्फ कुछ तो टूटे .
रही बात आपकी इंटेलेक्चुअलता की, तो हताश न हों, आप नहीं तो आपके प्रतिनिधि वहाँ थे.[कभी कभी ऐसा भी होता है.]
वैसे इस शब्द में ''ईंट ले के चल'' की भी ध्वनि सुनाई पड़ती है!
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