शूद्र और स्त्री को एक साँस में ढोल आदि के साथ रखने और ताडन का पात्र बताने वाली चौपाई की अनेक प्रकार से व्याख्याएं हो चुकी हैं। ''जड़'' जलधि के इस कथन का स्रोत गर्ग-संहिता आदि में पहले से उपलब्ध है. -- ''ताडनं मार्दवं यान्ति, शूद्राः पटहः स्त्रियः''
इसे उद्धृत करते हुए ,संभवतः, बाबा तुलसी के मन में उन संहिताओं की जड़ता पर व्यंग्य का भाव भी रहा हो जिन्होंने स्वयं बाबा को भी खूब सताया था. साथ ही तत्कालीन परिस्थितियों में बाबा के अपने अंतर्विरोधों से भी आँख नहीं फेरी जा सकती. सन्दर्भ-च्युत करके इस चौपाई के आधार पर जिसने भी जब भी तुलसी बाबा को स्त्री-विरोधी माना है, या शूद्र-शत्रु घोषित किया है ,उनके प्रति अन्याय ही किया है और अपनी संकुचित दृष्टि का प्रमाण दिया है. इसीलिये अनेक सहृदय जन इस चौपाई की अलग-अलग व्याख्या करते दिखाई देते हैं, जो स्वागतेय ही है |
-सम्पादक
अक्तूबर २००८
इसे उद्धृत करते हुए ,संभवतः, बाबा तुलसी के मन में उन संहिताओं की जड़ता पर व्यंग्य का भाव भी रहा हो जिन्होंने स्वयं बाबा को भी खूब सताया था. साथ ही तत्कालीन परिस्थितियों में बाबा के अपने अंतर्विरोधों से भी आँख नहीं फेरी जा सकती. सन्दर्भ-च्युत करके इस चौपाई के आधार पर जिसने भी जब भी तुलसी बाबा को स्त्री-विरोधी माना है, या शूद्र-शत्रु घोषित किया है ,उनके प्रति अन्याय ही किया है और अपनी संकुचित दृष्टि का प्रमाण दिया है. इसीलिये अनेक सहृदय जन इस चौपाई की अलग-अलग व्याख्या करते दिखाई देते हैं, जो स्वागतेय ही है |
-सम्पादक
अक्तूबर २००८
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