सच कहूँ तो मैं प्रतीक्षारत था इस गलियारे को 'उवाच' पर देखने. संगोष्ठी वाले दिन इतनी गर्मी और भीड़ थी कि ठीक से सब देख नहीं पाये थे. इसमें कोई शक नहीं कि आप ट्रेण्ड सेटर हैं. गोष्ठी पूर्व और उपरान्त इसके प्रचार-प्रसार में आपने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. रविवार के दिन संगोष्ठी करना और खचाखच भरे हाल में इतनी संख्या में लोगों की उपस्थिति आपके संस्थान, आयोजकों और आपके प्रति सम्मान की बात है. स्वयं मैं अपनी माताजी के अस्पताल में होते हुए खुद को आने से नहीं रोक पाया. चन्द महीनों पहले ही इस उत्तर आधुनिकता विषय पर कुछ सुनने मिला था. डॉ घनश्याम से लंबी बातचीत भी हुई. परन्तु इसकी संकल्पना और व्याख्या से इसी संगोष्ठी में विजन साफ हो पाया. संगोष्ठी में डॉ दिलीप सिंह, प्रो. डिमरी और प्रो. वेंकटेश्वर जी ने अपनी खास शैली में इस विषय की विषद विवेचना की. यदि इन तीनों के विचार भी प्रकाशित होते तो सर्वहितकारी होता. अंत में यही कहूँगा कि आपने परिश्रम कर उत्तर आधुनिकता पर अपनी फँचाइज़ खोल 'आई पी एल' की तरह एक टीम तैयार कर नगर की ओर से 20-20 मैच भी खेल लिया और विजयी रहे. इसके लिये बधाई.
आदरणीय ऋषभदेव जी 'गलियारा उत्तरआधुनिकता का' आपने पोस्टर प्रदर्शनी को जिस रूप में अपने ब्लाग में दिखाया है उसके लिए आप्को प्रशंसायुक्त अभिनन्दन. ब्लाग पाठकों के लिए यह निश्चित रूप से एक नी जानकारी होगी. आप सभा के हर कार्यक्रम को इतनी दक्षता और प्रतिबद्धता के साथ वेबसाईट पर प्रदर्शित करते हैं, यह मुझे बहुत प्रेरित करता है. युवाओं के लिए आपके ये कार्य अनुकरणीय होने चाहिये.
अर्जुन जी का फ़ोन आया था, प्रभावित थे आपके आयोजन से.
हर बार आपके कार्यक्रम में सभा की सुसंस्कृत छवि उभरकर आती है, जो लोगो को चकित कर देती है.
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सच कहूँ तो मैं प्रतीक्षारत था इस गलियारे को 'उवाच' पर देखने. संगोष्ठी वाले दिन इतनी गर्मी और भीड़ थी कि ठीक से सब देख नहीं पाये थे. इसमें कोई शक नहीं कि आप ट्रेण्ड सेटर हैं. गोष्ठी पूर्व और उपरान्त इसके प्रचार-प्रसार में आपने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. रविवार के दिन संगोष्ठी करना और खचाखच भरे हाल में इतनी संख्या में लोगों की उपस्थिति आपके संस्थान, आयोजकों और आपके प्रति सम्मान की बात है. स्वयं मैं अपनी माताजी के अस्पताल में होते हुए खुद को आने से नहीं रोक पाया.
चन्द महीनों पहले ही इस उत्तर आधुनिकता विषय पर कुछ सुनने मिला था. डॉ घनश्याम से लंबी बातचीत भी हुई. परन्तु इसकी संकल्पना और व्याख्या से इसी संगोष्ठी में विजन साफ हो पाया. संगोष्ठी में डॉ दिलीप सिंह, प्रो. डिमरी और प्रो. वेंकटेश्वर जी ने अपनी खास शैली में इस विषय की विषद विवेचना की. यदि इन तीनों के विचार भी प्रकाशित होते तो सर्वहितकारी होता.
अंत में यही कहूँगा कि आपने परिश्रम कर उत्तर आधुनिकता पर अपनी फँचाइज़ खोल 'आई पी एल' की तरह एक टीम तैयार कर नगर की ओर से 20-20 मैच भी खेल लिया और विजयी रहे. इसके लिये बधाई.
प्रो.एम.वेंकटेश्वर की ई-मेल टिप्पणी ---
आदरणीय ऋषभदेव जी
'गलियारा उत्तरआधुनिकता का' आपने पोस्टर प्रदर्शनी को जिस रूप में अपने ब्लाग में दिखाया है उसके लिए आप्को प्रशंसायुक्त अभिनन्दन. ब्लाग पाठकों के लिए यह निश्चित रूप से एक नी जानकारी होगी. आप सभा के हर कार्यक्रम को इतनी दक्षता और प्रतिबद्धता के साथ वेबसाईट पर प्रदर्शित करते हैं, यह मुझे बहुत प्रेरित करता है. युवाओं के लिए आपके ये कार्य अनुकरणीय होने चाहिये.
अर्जुन जी का फ़ोन आया था, प्रभावित थे आपके आयोजन से.
हर बार आपके कार्यक्रम में सभा की सुसंस्कृत छवि उभरकर आती है, जो लोगो को चकित कर देती है.
-एम वेंकटेश्वर
आदरणीय वेंकटेश्वर सरजी और
प्रिय भाई होमनिधि जी!
आपके प्रेमपूर्ण प्रोत्साहन के लिए कृतज्ञ हूँ.
शीघ्र मिलेंगे ...कुछ और करेंगे मिलकर.
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