पुस्तक समीक्षा
देश-दुनिया के 'सवाल' और पत्रकारिता के 'सरोकार'
- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
प्रसिद्ध तेवरीकार, कवि, आलोचक और पत्रकार ऋषभदेव शर्मा की
दैनिक संपादकीय टिप्पणियाँ पिछले कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय होकर कई अलग-अलग संकलनों के रूप में आ चुकी हैं। ऋषभदेव शर्मा के संपादकीयों में कहीं भी
उबाऊपन नहीं होता। पठनीयता उनका विशेष गुण है। समाचार पत्र में प्रकाशित संपादकीय को
पढ़ने और पुस्तकाकार प्रकाशित
संपादकीय को पढ़ने का अनुभव अलग-अलग होता है। क्योंकि अब ये तात्कालिकता की
सीमा पारकर अपनी उत्तरजीविता सिद्ध करते हैं। इससे पहले प्रकाशित उनके संपादकीयों के
दो संकलन ‘संपादकीयम्’ (2019) और
‘समकाल से मुठभेड़’ (2019) की काफी चर्चा हुई है।
उसी क्रम में ‘सवाल और सरोकार’ उनकी रोचक
और चुटीली समसामयिक टिप्पणियों का तीसरा संग्रह है। वैसे ऑनलाइन तो उनके और भी दो संपादकीय-संकलन उपलब्ध हैं। अस्तु!
‘सवाल और सरोकार’
में अगस्त 2019 से दिसंबर 2019 के बीच समसामयिक विषयों पर लिखी टिप्पणियाँ संगृहीत हैं। इस पुस्तक की भूमिका
में प्रो. गोपाल शर्मा ने यह स्पष्ट किया है कि ‘देश-दुनिया के सरोकारों को सवाल-जवाब की शक्ल देते हुए प्रस्तुत करना भी संपादकीय का दायित्व है।‘ इन संपादकीय टिप्पणियों में सामाजिक से लेकर राजनैतिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक और आर्थिक सवालों तक पर गंभीर विमर्श निहित है। इस विमर्श
को लेखक ने कुल आठ खंडों में सहेजा है। इन खंडों के शीर्षक ध्यान आकृष्ट करते हैं
- सियासत की बिसात, फिरदौस बर रूये ज़मीं अस्त,
अगल-बगल, लोक बनाम तंत्र,
मंडी की मार बुरी, समाज : आज, पृथ्वी की पुकार तथा प्रलय की छाया। ये शीर्षक लेखक
के सरोकारों, पैनी दृष्टि और लोकमंगल भावना को दर्शाते हैं।
सामाजिक कुरीतियों, दार्शनिक कट्टरपन,
राजनैतिक पैंतरेबाजी, आतंकी हमलों जैसी तमाम घटनाओं
और युद्ध की विभीषिका से लेखक का मन विचलित हो उठता है और वे आक्रोश से भर जाते हैं।
उनका यह आक्रोश उनकी तेवरियों में तो मुखरित है ही, इन संपादकीयों
में भी देखा जा सकता है। ऋषभदेव शर्मा भारत सरकार के इंटेलीजेंस ब्यूरो के खुफिया अधिकारी
रह चुके हैं। उन्होंने भारत-पाक सीमा पर अपनी नियुक्ति के दौरान
सुरक्षाकर्मियों और सैनिकों के जीवन को भी नजदीक से देखा है। अतः जम्मू-कश्मीर के बारामूला
जिले में जो आतंकवादी हमला हुआ था, उसके विरुद्ध आवाज उठाते हुए
वे सभी को चेताते हैं कि ‘आतंकी चोरी छिपे वारदातें करते हैं
और बिलों में छिप जाते हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी।‘
(पृ 103)। वे यह कहने में संकोच नहीं करते कि
‘कश्मीर घाटी से सुरक्षा बलों को हटाने की माँग करने वाले हमारे नेताओं
को इन हालात के प्रति भी सचेत होना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि अपनी राजनीतिक रोटियाँ
सेंकने के चक्कर में वे अनजाने में आतंकियों को सहारा दे बैठें!’ (पृ 104)
पत्रकार के रूप में एक जिम्मेदार
नागरिक का कर्तव्य निर्वाह करते हुए ऋषभदेव शर्मा ने बहुत बार समकालीन राजनीति की दुखती
रगों पर भी उँगली रखी है। वे सवाल
उठाते हैं कि ‘क्यों नहीं पार्टियाँ अपने उच्छृंखल सदस्यों को
तुरंत दंडित करतीं?’ इसका स्पष्टीकरण भी वे खुद ही करते हैं यह
कहकर कि ‘नहीं करतीं, क्योंकि इन बिगड़े
बच्चों की बिगड़ी हरकतें भी पार्टी को चर्चा में बनाए रखने की नीति हो सकती है!’
(पृ 10)। लेखक यह कहकर चुटकी लेते हैं कि
‘कोई छोटी-सी पाठशाला होती तो ऐसे बच्चों को कभी
का निष्कासित कर दिया जाता और सदा के लिए एडमिशन पर रोक लगा दी जाती। लेकिन देश की
सबसे बड़ी पंचायत को पंगु बनाने वालों के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हो सकती?
ज्यादा से ज्यादा आप उन्हें मार्शलों की मदद से बाहर खदेड़ सकते हैं।
पर इससे क्या फर्क पड़ता है? बिगड़े बच्चे अगली घंटी बजते ही फिर
क्लास में आ धमकेंगे और मास्टर जी की नाक में दम करेंगे!’ (पृ
10)। लेखक जहाँ राजनैतिक पैंतरेबाजी और आतंक के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त
करते हुए दिखाई देते हैं, वहीं चिंदी-चिंदी
होते पर्यावरण के प्रति चिंतित भी। अनेक स्थलों पर व्यंग्य और भाषा का खिलंदड़ापन पाठक
को देर तक कभी कचोटता, तो कभी गुदगुदाता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि
इन 60 छोटी-छोटी सारगर्भित टिप्पणियों में देश और दुनिया के प्रति लेखक की चिंता और गंभीर
चिंतन द्रष्टव्य है।
★★★
समीक्षित
पुस्तक : सवाल और सरोकार
लेखक : ऋषभदेव शर्मा
प्रकाशक : परिलेख प्रकाशन,
नजीबाबाद
वितरक : श्रीसाहिती प्रकाशन,
हैदराबाद/ मो. 9849986346.
संस्करण : 2020
पृष्ठ : 128
मूल्य : रु
140/-
★★★★
समीक्षक:
गुर्रमकोंडा नीरजा,
सह
संपादक- ‘स्रवंति’,
असिस्टेंट
प्रोफेसर, उच्च शिक्षा और शोध
संस्थान,
दक्षिण
भारत हिंदी प्रचार सभा,
हैदराबाद- 500004.
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