रामायण संदर्शन/संपादकीय
अक्टूबर 2020
मंगलभवन अमंगलहारी
प्रिय पाठकगण,
नवरात्र पर्व और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें। यह काल समस्त भूमंडल के लिए अत्यंत विषम संकट काल है। सारा विश्व 'कोरोना' महामारी से विकल है। आशा है, यथाशीघ्र मनुष्यता इस महामारी का तोड़ खोज लेगी। लेकिन फिलहाल इसकी विकरालता और अपराजेयता दशग्रीव रावण की विकरालता और अपराजेयता की याद दिला रही है। विनाशकारी शक्तियाँ चाहे कितनी भी बलवान क्यों न हों, उन्हें अंततः रचनात्मक शक्तियों के आगे हारना ही पड़ता है। राम के हाथों रावण का वध इसी सनातन सत्य की रूपक-कथा है। रावण कल भी हारा था, आज भी हारेगा। रावण सृष्टि के लिए अमंगल का प्रतीक है, तो राम 'मंगल भवन अमंगल हारी' हैं। इसलिए मृत्यु पर जीवन की विजय में विश्वास रखें और आत्मविश्वास बनाए रखें।
इस आत्मविश्वास का स्रोत हमारी यह आस्था है कि शरणागत पर किसी भी प्रकार के संकट और अमंगल की छाया पड़ने देना राम को स्वीकार नहीं। तभी तो वे युद्धभूमि में सुग्रीव और विभीषण की सुरक्षा के लिए सबसे अधिक चिंतित रहते हैं; और सक्रिय भी। युद्धभूमि में रावण ने क्रुद्ध होकर विभीषण को लक्ष्य करके प्रचंड शक्ति छोड़ी, जो यमराज के दंड के समान अचूक थी। बाबा तुलसीदास बताते हैं कि उस अत्यंत भयंकर शक्ति को आते देखकर श्रीराम ने विचार किया कि शरणागतों के दुख को नाश करना मेरा प्रण है - 'प्रणतारति भंजन पन मोरा।' बस फिर क्या था, राम स्वयं कूदकर विभीषण के सामने आ गए और उस प्राणघाती शक्ति को अपने वक्ष पर झेल लिया। रावण का यह हमला कितना खतरनाक था इसका अनुमान इस कथन से किया जा सकता है कि शक्ति लगने पर राम को थोड़ी देर के लिए मूर्छा आ गई - 'लागी सकति मुरुछा कछु भई।'
अभिप्राय यह कि राम शरणागत वत्सल और लोकरक्षक हैं। वे किसी भी स्थिति में लोक को नष्ट नहीं होने दे सकते। लेकिन स्मरणीय यह भी है कि राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उन्हें मर्यादाओं का अतिक्रमण तनिक भी स्वीकार नहीं। इसलिए अगर राम की कृपा चाहिए, तो हमें लोक मर्यादा का पालन करना होगा। और इस समय लोक मर्यादा यही है कि जब तक कोरोना वायरस का सही तोड़ नहीं मिल जाता, तब तक 'सामाजिक दूरी' के नियमों का पालन करें!
विजया दशमी की शुभकामनाओं सहित,
संपादक
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