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बुधवार, 11 नवंबर 2020

'कोरोना काल की डायरी' की भूमिका : अवधेश कुमार सिन्हा




भूमिका 

कालखंड विशेष का मुकम्मल ऐतिहासिक दस्तावेज 

जब से मनुष्य ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में समुदायों में, समूहों में रहना आरम्भ किया, व्यापार के लिए जमीन या जल मार्ग से अकेले या अपने जानवरों के साथ एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरी जगह जाना शुरू किया, तब से मानव शरीर या जानवरों/ पक्षियों से जुड़ी महामारियाँ भी होती रही हैं। संक्रामक महामारियाँ जब कई देशों को अपनी ज़द में ले लेती हैं, तो वे वैश्विक महामारी (पैन्डेमिक) का रूप धारण कर लेती हैं। कृषि से महानगरीय सभ्यता में तबदील होती आबादी, पर्यावरण से अधिकाधिक छेड़छाड़, आवागमन के त्वरित साधनों एवं लोगों के दुनिया के एक भाग से दूसरे भागों के लोगों से मिलने-जुलने के अधिक अवसरों ने वैश्विक महामारियों को फैलने का अधिक अवसर दिया है। इन वैश्विक महामारियों का एथेन्स का प्लेग (430 - 426 ई. पू.) से लेकर ईबोला (2014) एवं ज़ीका (2015) तक एक लंबा इतिहास है। अब इस कड़ी में जुड़ गया है कोरोना वायरस डिज़ीज़- 2019 (कोविड-19) जो नवंबर, 2019 में चीन के वुहान शहर से शुरू होकर अभी तक दुनिया के 218 देशों/ क्षेत्रों में फैलकर चार करोड़ चौहत्तर लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करते हुए बारह लाख से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बना चुका है। अभी भी कोविड-19 का कहर जारी है। 

दुनिया की प्रमुख वैश्विक महामारियों ने जितने समय में और जिस हद तक पृथ्वी पर मनुष्यों को प्रभावित किया है, अभी तक के इतिहास में सबसे कम समय में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली महामारियों में कोविड-19 अग्रणी है। आदमी से आदमी में फैलने वाले संक्रामक नोवेल कोरोना वायरस के बारे में जानकारी का अभाव और इससे फैली वैश्विक महामारी की कोई दवा उपलब्ध नहीं होने के कारण इससे बचाव ही एकमात्र उपाय रहा। फलतः, आदमी से आदमी को दूर रहने के लिए इसने लोगों को अपने-अपने घरों में महीनों बंद रहने पर मजबूर किया। इस गृह नज़रबंदी का लोगों पर दोहरा मनोवैज्ञानिक असर हुआ- एक तो प्रतिदिन कामकाज के लिए बाहर न निकलकर घरों में कैद रहने की ज़िंदगी से लोगों में अवसादजनित बीमारियाँ बढ़ीं, तो दूसरी ओर लगातार भागदौड़ की ज़िंदगी में कभी एक साथ नहीं बैठने वाले परिवार के सभी सदस्यों को महीनों साथ रहने के अवसर ने उनके बीच संबंधों के एक नए अध्याय को जोड़ा। उद्योग धंधों, कल-कारखानों, सेवा प्रदाता प्रतिष्ठानों की बंदी ने वाणिज्य व व्यापार को ठप्प करके लाखों लोगों के रोजगार छीन लिए, जिससे भुखमरी के कगार पर खड़े लाखों मजदूरों व कामगारों को शहरों से अपने-अपने गाँवों की ओर उलट पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा। आवागमन के साधनों की बंदी ने इनकी तकलीफों को और बढ़ा दिया। यद्यपि इनकी मदद के लिए मानवता के कई हाथ बढ़े, फिर भी इतने बड़े पैमाने पर इनके लिए पुनर्वास और आजीविका मुहैया कराने की समस्याओं ने केंद्र व राज्य सरकारों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दीं, जिसने कहीं-कहीं कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा की। तेजी से फैलते कोरोना संक्रमण ने लाखों लोगों के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधा जुटाने में भारत में चिकित्सीय व जन-सुविधाओं की कमी को उजागर कर इसे दूर करने के लिए सरकारों को शीघ्रता से प्रयास करने पर मजबूर किया। कोरोना काल में देशों में विकास की गति धीमी हुई और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिससे उबरने में महीनों/ सालों लग जाएँगे। भारत में वोटों की राजनीति ने, सरकारों द्वारा हालात से निपटने में विफलता/ सफलता ने राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का अवसर प्रदान किया। वैश्विक महामारी से निपटने में सरकारों की व्यस्तता का लाभ उठाकर आतंकवाद ने भी सिर उठाने की कोशिश की। वायरस का स्रोत चीन को मानने के अमेरिकी आरोप से नए अंतरराष्ट्रीय संबंध व वैश्विक कुटनीतिक समीकरण बने और युद्ध तक की नौबत आ गई। सैकड़ों देशों में फैली कोरोना वैश्विक महामारी की निगरानी और मार्गदर्शन कर रहे विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी पक्षपात और गलत सूचना देने के आरोप लगे। 

कोविड-19 के अभूतपूर्व इतिहास को भविष्य में जब भी खंगाला जाएगा, यूँ तो कई स्रोत मिल जाएँगे इसके लिए लेकिन हैदराबाद से प्रकाशित एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार-पत्र में कोरोना काल में लिखी गई संपादकीय टिप्पणियों का संकलन एक विशिष्ट स्रोत होगा। ‘कोरोना काल की डायरी’ के नाम से प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा के 97 संपादकीयों का यह संकलन न सिर्फ समसामयिक खबरों पर दैनंदिन अखबारी टिप्पणियाँ हैं, वरन् समग्रता में एक ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज है जो मार्च 2020 से नवंबर 2020 के काल-खंड में कोविड-19 से उपजी तमाम परिस्थितियों का समाजशास्त्र, चिकित्सा व जन-स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति, शिक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं कूटनीति जैसे अनेक आयामों पर शोध का उपादान प्रस्तुत करता है। सच में, इतने विविध एवं व्यापक विषयों पर दिन-प्रतिदिन के आकलन और उन पर निष्पक्ष टिप्पणियों ने ‘कोरोना काल की डायरी’ को एक काल-खंड विशेष का मुकम्मल एवं प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज बना दिया है। लेकिन यह दस्तावेज आम पाठक के लिए क्रूड नहीं है, वरन् प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा जैसे हिंदी साहित्य एवं भाषा विज्ञान के मर्मज्ञ की कलम से संपादकीय टिप्पणियाँ भाषा की प्रांजलता के साथ सरस, रोचक व पठनीय हो गई हैं। तेवरी काव्य के जनक एवं लब्ध प्रतिष्ठित कवि-समीक्षक प्रोफेसर शर्मा ने अपने संपादकीयों में जिस तरह यथास्थान दोहों, कविताओं, कहावतों, शेरों का प्रयोग किया है, उससे उनके कथ्य पत्रकारिता की मात्र तथ्यात्मक टिप्पणियाँ न होकर काव्यमय लगते हैं। वैसे तो, लेखक के संपादकीयों के चार संकलन पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं, लेकिन ‘कोरोना काल की डायरी’ के रूप में उनके संपादकीयों का यह पाँचवाँ संकलन एक काल विशेष में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाली अभी तक की सबसे बड़ी महामारी और उससे उपजी समस्याओं के क्रॉनिकल के रूप में एक अलग और विशिष्ट स्थान रखता है, जो निश्चित ही पठनीय और संग्रहणीय है। 

- अवधेश कुमार सिन्हा 
जे-501, 
सेवियर ग्रीनआर्क सोसायटी 
ग्रेटर नोएडा (पश्चिम), उत्तर प्रदेश 

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