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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

'लोकतंत्र के घाट पर' की समीक्षा : आचार्य प्रताप

 लोकतंत्र की विसंगतियों पर प्रहार करती  उत्कृष्ट टिप्पणियाँ

-आचार्य प्रताप


प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा जी आज हैदराबाद की एक अनोखी कलम के नाम से जाने जाने वाले उत्कृष्टतत्म व्यक्ति हैं।

मैं डेली हिंदी मिलाप समाचार पत्र का दैनिक पाठक और इस कारण मैंने पूर्व में ही आपकी समस्त टिप्पणियां पढ़ी है और आज उनका संकलन "लोकतंत्र की घाट पर" नमक इस पुस्तक पर देखा और पढ़ा।


मुझे इस बात ने बहुत प्रभावित किया जिन तथ्यों का ज्ञान मुझे नहीं था उनकी जानकारी भी मुझे प्राप्त हुई जैसे कि अंग्रेजो के समय की बात जो कि सन 1885 की थी जो कि असम राज्य के बारे में बताया गया है। और भी ऐसी अनेकानेक जानकारियां बताई गई है जो मुझे बहुत प्रभावित करती है जैसे कि सरदार पटेल की छवि को धूमिल करने का प्रयास तथा लोकतंत्र की हत्या, राजनेता का विकास, मतदाता की हानि, मतदाताओं का मतदान के लिए अव्यवहारिक रूप से विरोध, दलों का संगठित होना, विपक्ष की मजबूती, विपक्ष का असंतोष, कश्मीर की समस्या, कैराना पर कब्जा आदी समस्त टिप्पणियां मुझे बहुत प्रभावित कीं।


आपकी लेखनी और शत्-शत् बार प्रणाम करता हूं जो कि कटु किंतु सत्य लिखती है इन टिप्पणियों के आधार पर यदि आपके बारे में दो शब्द लिखने के लिए कहा जाए तो मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि दो शब्द काफी नहीं है आपके व्यक्तित्व के लिए।

       भारत में चुनाव कैसे जीते जाते हैं? भारत का प्रजातंत्र कैसे आगे बढ़ रहा है और कौन इसे पीछे धकेल रहा है? क्या यहाँ जुगाड़ काम करता है ? ऐसे बहुत से सवाल आपके मन में भी हर चुनाव को लेकर उठते होंगे। इसके बावजूद इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि हम भारतवासियों की रग-रग में इलेक्शन समाया हुआ है, क्योंकि हम इसे प्रजातंत्र से साक्षात्कार का आसान तरीका समझते हैं।

        पान की दुकान से लेकर प्राइम टाइम के दंगल तक जब आपको कोई ठीक-ठिकाने की बात सीधी तरह से न समझा पाए, तो आप इस ‘लोकतंत्र के घाट पर’ के पाठ द्वारा राहत पा सकते हैं।

जैसी ही मुझे सुबह सुबह उसका लिंक को प्राप्त हुआ पुस्तको पढ़ना शुरू किया तो एक नई दिशा मिलती गई और मैं आगे की तरफ बता गया इस पुस्तक के सभी पृष्ठों को पढ़ने के लिए मुझे तीन घंटे से भी अधिक समय लगा।

मांँ भगवती से बिनती करता हूंँ कि आपको ऐसे ही लिखने की शक्ति प्रदान करें और आपकी तूलिका को प्रबल और प्रभावशाली बनाएं।


लेखक परिचय:


डॉ. ऋषभदेव शर्मा

जन्म : 4 जुलाई, 1957। ग्राम गंगधाड़ी, जिला मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : एमएससी (भौतिकी), एमए (हिंदी), पीएचडी ( हिंदी : 1970 के पश्चात की हिंदी कविता का अनुशीलन)।

कार्य: परामर्शी (हिंदी), दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, मौलाना आजाद उर्दू राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद (2019-2020)। पूर्व प्रोफेसर, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास (सेवानिवृत्त : 2015). पूर्व खुफिया अधिकारी, इंटेलीजेंस ब्यूरो, भारत सरकार (1983-1990)।



Print Length: 241 pages

ASIN: B08JD22GRD

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http://acharypratap.blogspot.com/2020/09/blog-post.html?m=1




1 टिप्पणी:

Achary Pratap ने कहा…

जय हो प्रभु जी