हैदराबाद, १३ सितंबर,२०११.
हिंदी शिक्षण के उद्देश्य को हिंदी पढना-लिखना सिखा देने तक सीमित करना किसी भी प्रकार उचित नहीं माना जा सकता. वास्तव में तो भाषा-कौशलों के अलावा हिंदी भाषी समाज की संस्कृति और हिंदी भाषा की अपनी संस्कृति को भी जब तक इसके साथ नहीं जोड़ा जाता तब तक भाषा शिक्षण अधूरा है. खास तौर से कविता पढ़ाते समय इस बात का ख़याल रखा जाना चाहिए कि कविता केवल आस्वादन के लिए नहीं भाषा और संस्कृति की शिक्षा के माध्यम के रूप में भी पढाई जानी चाहिए.
ये विचार यहाँ केंद्रीय हिंदी संस्थान में महाराष्ट्र से आए हिंदी अध्यापकों के एक समूह के समक्ष ''आधुनिक कविता और उसका शिक्षण'' विषय पर विशेष व्याख्यान देते हुए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के आचार्य डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने बतौर अतिथि वक्ता व्यक्त किए. प्रो. ऋषभ ने कविता शिक्षण के पाठ्य बिंदुओं की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्यिक पृष्ठभूमि, साहित्यिक रूढ़ियाँ, समीक्षात्मक प्रतिमान, भाषा, बुनावट, गठन और संस्कृति जैसे आयामों को शामिल किए बिना कविता-शिक्षण प्रभावी नहीं हो सकता. उन्होंने निराला,सुभद्रा कुमारी चौहान, अज्ञेय, नागार्जुन, धूमिल और अरुण कमल की कविताओं के आधार पर काव्य-भाषा में निहित सामाजिक-सांस्कृतिक सूचनाओं की विशद व्याख्या भी की.
आरंभ में केंद्रीय हिंदी संस्थान की क्षेत्रीय निदेशक डॉ. शकुंतला रेड्डी ने अतिथि वक्ता का स्वागत किया. डॉ.रामनिवास साहू ने उनकी साहित्य सेवा का परिचय दिया . डॉ. अनीता गांगुली और प्रो. हेम राज मीणा 'दिवाकर' ने धन्यवाद व्यक्त किया.
2 टिप्पणियां:
सार्थक व सफल आयोजन।
हमारी संस्कृति में भाषा की अहम भूमिका होती है इसलिए आवश्यक है कि हम हमारी भाषा में ही सोंचे और कार्य करें॥ आयोजन के लिए बधाई॥
एक टिप्पणी भेजें