'अज्ञेय साहित्य समारोह' का उद्घाटन 30 को हैदराबाद, 29 अप्रैल, 2011 (विज्ञप्ति)। "सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' उत्तरछायावादी युग के एक गंभीर चिंतक और अपनी विचारणाओं के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध एवं निष्ठावान साहित्यकार रहे हैं। अज्ञेय एक बहुअधीत, प्रातिभ साहित्यकार होने के साथ साथ भारतीय सांस्कृतिक चेतना को आत्मसात करने वाले विचारवान कवि रहे हैं। परंपरा उनके लिए उपेक्षा की वस्तु नहीं रही है। नवता का जहाँ वे स्वागत करते हैं वहीं परंपरा की विरासत के मूल्य को भी समझते हैं। इसीलिए भारतीय चिंतन, दर्शन, संस्कृति और काव्यशास्त्र की मूलभूत स्थापनाओं से उन्हें न तो कोई गुरेज़ है और न ही परहेज़।" ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में आयोजित 'अज्ञेय जन्म शती समारोह' का उद्घाटन करने के लिए मुंबई से पधारे प्रतिष्ठित काव्यशास्त्रीय विद्वान प्रो.त्रिभुवन राय ने एक खास बातचीत में प्रकट किए। 30 अप्रैल, शनिवार को होने वाले कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर प्रो.त्रिभुवन राय ने अज्ञेय के संबंध में बताते हुए यह कहा कि अज्ञेय के साहित्य का, खासतौर से उत्तरवर्ती साहित्य का पुनर्पाठ करने से यह बात स्पष्ट होती है कि वे भारतीय रस दृष्टि से अत्यधिक प्रभावित हैं। प्रो.राय ने कहा कि अज्ञेय के साहित्य में संकुचित नियता को विस्तृत समष्टि चेतना को अभिमुख करने की जो प्रवृत्ति पाई जाती है वह उन्हें भारतीय रस दृष्टि से जोड़ती है। इसी बिंदु पर वे हमारी संस्कृति और सौंदर्य चेतना के प्रगाड़ रचनाकार के रूप में सामने आते हैं। डॉ.त्रिभुवन राय ने यह भी याद दिलाया कि पूर्वाग्रह और असहृदय भाव से न अज्ञेय के साहित्य का अनुशील किया जा सकता है और न सही अर्थ में मूल्यांकन। उन्होंने कहा कि आवश्कता इस बात की है कि हम अज्ञेय को अज्ञेय के धरातल पर समझने और मूल्यांकित करने का प्रयत्न करें। उन्होंने आशा प्रकट की कि उच्च शिक्षा और शोध संस्थान द्वारा 'अज्ञेय और उनका साहित्य' पर आयोजित इस एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी और पोस्टर प्रदर्शनी से अज्ञेय के साहित्य को विचारधाराओं से मुक्त वस्तुपरक दृष्टि से समझने में सहायता मिलेगी। इस एकदिवसीय समारोह का उद्घाटन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार, खैरताबाद स्थित परिसर में शनिवार को प्रातः 9.30 बजे होगा, जिसकी अध्यक्षता भाषाचिंतक प्रो.दिलीप सिंह करेंगे। अज्ञेय साहित्य के विशेषज्ञ डॉ.सच्चिदानंद चतुर्वेदी बीज व्याख्यान देंगे। विभिन्न सत्रों में डॉ.राधेश्याम शुक्ल, डॉ.टी,मोहन सिंह, डॉ.एम.वेंकटेश्वर, डॉ.जे.पी.डिमरी, डॉ.टी.वी.कट्टीमनी, डॉ.विष्णु भगवान शर्मा, डॉ.आलोक पांडेय, डॉ.गोपाल शर्मा, डॉ.घनश्याम, डॉ.साहिरा बानू, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.जी.नीरजा, डॉ.बलविंदर कौर, डॉ.गोरखनाथ तिवारी, डॉ.पी.श्रीनिवास राव, डॉ.बी.बालाजी, चंदन कुमारी, मोहम्मद कुतुबुद्दीन और एम.राजकमला अज्ञेय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध आयामों पर प्रकाश डालेंगे। सभी साहित्य प्रेमियों से समारोह में पधारने का अनुरोध है। |
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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
अज्ञेय के साहित्य का पुनर्पाठ आवश्यक - डॉ. त्रिभुवन राय
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2 टिप्पणियां:
शुभकामनायें व अग्रिम बधाईयाँ।
काश! हम भी वहां होते :(
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