साहित्य : सृजन और समीक्षा
हिंदी वाले जुट जाय! क्या आपको यह असम्भव नहीं लगता... जहां बडी युनिवर्सिटी में बैठा एक व्यक्ति यह समझता है कि वह लाखों में झूल रहा है और दूसरा सच्चे मन से हिंदी की सेवा करें तो भी कोई संज्ञान नहीं लेता:(
एक आन्दोलन की जगह यह व्यवस्था बन गयी है, भारयुक्त।
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हिंदी वाले जुट जाय! क्या आपको यह असम्भव नहीं लगता... जहां बडी युनिवर्सिटी में बैठा एक व्यक्ति यह समझता है कि वह लाखों में झूल रहा है और दूसरा सच्चे मन से हिंदी की सेवा करें तो भी कोई संज्ञान नहीं लेता:(
एक आन्दोलन की जगह यह व्यवस्था बन गयी है, भारयुक्त।
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