नमस्कार. दरअसल प्रगतिवादियों ने छायावाद से चिढ के कारण प्रेम को बहिष्कृत करके अपनी कविता को स्वयं ही विकलांग बनाने का अपराध किया था. केदार जी उस विकलांगता से बहुत दूर हैं और प्रेम के रूपाश्रित / दैहिक स्वरूप को अपने काव्य में पत्नी प्रेम / गार्हस्थ्य प्रेम के अकुंठ रूप में प्रतिष्ठित करते हैं. मुझे उनकी यह कुंठाहीनता सदा आकर्षित करती रही है.
@आदरणीय ऋषभ देव जी, आपने यह बात अपने व्याख्यान में भी उजागर की थी, मैं अपने ब्लाग पर लिखे लेख में इस बात को उजागर करने से चूक गया। अच्छा किया कि आपने उसे याद दिला दिया। आभार। हमारे भी चित्र खूम आए हैं :)
6 टिप्पणियां:
बढिया चित्र सरजी। इस गोष्ठी की सफलता में आप का सारगर्भित व्याख्यान रहा जिससे हम जैसों को केदार नाथ अग्रवाल को जानने का मौका मिला॥
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
नमस्कार. दरअसल प्रगतिवादियों ने छायावाद से चिढ के कारण प्रेम को बहिष्कृत करके अपनी कविता को स्वयं ही विकलांग बनाने का अपराध किया था. केदार जी उस विकलांगता से बहुत दूर हैं और प्रेम के रूपाश्रित / दैहिक स्वरूप को अपने काव्य में पत्नी प्रेम / गार्हस्थ्य प्रेम के अकुंठ रूप में प्रतिष्ठित करते हैं. मुझे उनकी यह कुंठाहीनता सदा आकर्षित करती रही है.
अच्छे चिंत्र हैं ..
@आदरणीय ऋषभ देव जी, आपने यह बात अपने व्याख्यान में भी उजागर की थी, मैं अपने ब्लाग पर लिखे लेख में इस बात को उजागर करने से चूक गया। अच्छा किया कि आपने उसे याद दिला दिया। आभार। हमारे भी चित्र खूम आए हैं :)
@संगीता पुरी
आगमन और टिप्पणी के लिए आभारी हूँ.
@cmpershad
आते रहिए मान्यवर, तो फिर हर फोटो में आप ही आप नज़र आएँगे.
आपने इस व्याख्यान पर अपने ब्लॉग पर जो कुछ लिखा है उसमें सारी बातें आ गई हैं. छोटी मोटी कुछ बातें छूट भी गई हों तो खास फर्क पड़ने वाला नहीं.
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