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रविवार, 7 अक्तूबर 2018

हिंदी साहित्य का इतिहास : सामाजिक परिस्थिति

भक्तिकालीन साहित्य की पृष्ठभूमि में विद्यमान समाज संक्रमण काल से गुजरने वाला समाज है। यों तो भारतीय समाज में अलग-अलग स्रोतों से आई हुई जातियाँ सम्मिलित थीं, जो इस काल से पूर्व ही सामंजस्य की प्रक्रिया को पूर्ण कर चुकी थीं; परंतु इस काल में एक ऐसी जाति का आगमन विजेता के रूप में भारतीय समाज में हुआ जिसके साथ सामंजस्य सरल नहीं था। यह जाति थी मुसलमान, जिसके धार्मिक-सामाजिक विश्वास और आचरण भारतीयों के लिए विजातीय थे। इसलिए समंजन की गति धीमी रही तथा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लंबे समय तक परस्पर विश्वास पैदा नहीं हो सका, बल्कि दोनों के एक दूसरे को शंका और घृणा की दृष्टि से देखने के कारण छुआछूत और आपसी भेदभाव ही बढ़ा। हिंदू धर्म जहाँ वर्णाश्रम व्यवस्था पर टिका हुआ था जिसकी जकड़बंदी के कारण समाज का विकास अवरुद्ध हो रहा था, वहीं इस्लाम धर्म भाईचारे का संदेश लेकर चला जिसमें धर्म परिवर्तन द्वारा कोई भी शामिल हो सकता था। यह धर्म परिवर्तन धार्मिकता के आधार पर होता तो शायद अच्छा रहता, परंतु स्वार्थ, बलात्कार और भय के कारण इस काल में जो धर्म परिवर्तन की घटनाएँ हुई उनसे हिंदू समाज में भीषण आशंका और आतंक का प्रसार हुआ, इसलिए हिंदुओं के समक्ष अपनी कुलीनता को बचाने की चुनौती पैदा हो गई, जिसने कट्टरता को बढ़ावा दिया। दूसरी ओर कुछ मुस्लिम शासकों का हिंदू जनता के साथ क्रूरता और भेदभाव का व्यवहार होने के कारण भी जनता को इस्लाम का संदेश बंधुता की अपेक्षा क्रूरता से भरा ही लगा। अनेक मुस्लिम शासकों की स्वेच्छाचारिता, कट्टरता और पाखंडप्रियता ने भी हिंदू-मुस्लिम सामंजस्य स्थापित होने में बाधा उत्पन्न की। 

इस काल में हिंदू समाज अनेक जातियों और उपजातियों में बंट चुका था, जिसके कारण आपसी सद्भाव में कमी आ गई थी। दास प्रथा भी प्रचलित थी। स्त्रियों का सम्मान नहीं रह गया था। अमीरों और मुस्लिम शासकों के यहाँ अपहरण करके लाई गई कुलीन स्त्रियाँ भोग की वस्तु समझी जाती थीं और दासियों के रूप में उन्हें उपहार में दिया-लिया जा सकता था। हिंदू राजा भी विलासिता में पीछे न थे। वे सैयद मुस्लिम महिलाओं को नर्तकी और दासी के रूप में रखते थे। बहुविवाह, स्त्रियाँ के पुनर्विवाह पर प्रतिबंध और सती जैसी प्रथाओं के कारण स्त्रियों का जीवन नारकीय हो गया था। हिंदुओं में बढ़ते असुरक्षा भाव के कारण इस काल में पर्दा प्रथा का भी प्रचलन बढ़ा। 

भक्तिकालीन भारतीय समाज में मुसलमान भी अनेक वर्गों में बंट चुके थे। ये वर्ग सत्ता में स्थान, मूल निवास स्थान, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और जातिगत प्रभाव के आधार पर उत्पन्न हुए थे। आक्रमण की वृत्ति के साथ साथ सहनशीलता का भाव भी धीरे धीरे पनपा जिसका विकास सूफी साधकों के माध्यम से हुआ। तलवार से आतंक पैदा करके प्रेम की पट्टी बाँधना इस काल में इस्लाम प्रचार की नीति बन गया। हिंदुओं की भाँति ही मुस्लिम समाज में भी निम्न वर्ग और महिलाओं की स्थिति शोचनीय थी। हरम प्रथा के कारण मुस्लिम औरतें नारकीय जीवन जी रही थीं।

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