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सोमवार, 3 जून 2013

दान से नहीं होगा टिकाऊ विकास

पूर्व राष्ट्रपति और जाने माने वैज्ञानिक ए.पी.जे.अब्दुल कलाम अपने कृतित्व और चिंतन के कारण 21 वीं शताब्दी के भारतीय नागरिकों के प्रेरणापुरुष हैं. उन्होंने भारत को आर्थिक रूप से विकसित विश्वशक्ति बनाने के सपने को साकार रूप देने के लिए एक कार्ययोजना प्रस्तुत की थी. वस्तुतः उन्होंने देश विदेश के अपने अध्ययन और अनुभव के आधार पर अपनी स्थापनाओं को प्रतिपादित किया है. ‘खुशहाल व समृद्ध विश्व’ (2012) शीर्षक से प्रकाशित उनकी और उनके सहयोगी सृजन पाल सिंह की कृति मूलतः अंग्रेज़ी में लिखी गई ‘टारगेट 3 बिलियन’ का हिंदी अनुवाद है. इस कृति की भी प्रथम विशेषता यही है कि यह लेखक के प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है. डॉ कलाम ने इस यथार्थ का गहराई से विवेचन किया है कि वैश्विक समाज में अभी तक शहरी और ग्रामीण इलाकों में बड़ी खाई है जो आय के स्तर और मानवीय सुविधाओं की गुणवत्ता के अंतर के रूप में दिखाई देती है. यदि हम सुखी, शांत और समृद्ध दुनिया चाहते हैं तो इस खाई को पाटना जरूरी है. यह पुस्तक इसी संदर्भ में टिकाऊ विकास प्रणाली की रणनीति सुझाने का प्रयास करती है. 

खुशहाल और समृद्ध विश्व के लिए यहाँ जिस योजना का प्रारूप दिया गया है उसका नाम है पुरा (PURA – Provision of Urban Amenities in Rural Areas) . इसका उद्देश्य विश्व के ग्रामीण लोगों की स्थितियों को सुधारना और उन्हें टिकाऊ विकास प्रदान करना है. स्मरणीय है कि विश्व के अल्पविकसित और विकासशील देशों में ही नहीं बल्कि विकसित देशों के भी कुछ भागों में ग्रामीण जनजीवन अत्यंत पिछड़ा हुआ है और ऐसे ग्रामीणों की प्रतिभा तथा संसाधन उपेक्षित पड़े रह जाते हैं. अभावों की स्थिति का सामना कर रहे और विकास के अवसरों से वंचित दुनिया के ऐसे ग्रामीणों की जनसंख्या तीन अरब से अधिक है. तीन अरब की यह जनसंख्या वैश्विक नीति निर्माण, राष्ट्रीय शासन तथा कॉरपोरेट सेक्टर की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हुए भी विकास के अवसरों से वंचित है लेकिन यदि स्थितियाँ ऐसी ही बनी रहीं तो एक न एक दिन यही जनसंख्या वर्त्तमान आर्थिक सभ्यता के लिए विस्फोटकारी साबित होगी. लेखकों ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि निरंतर बढ़ते लोकतांत्रिक विश्व में, इन्हीं के पास सरकार की चाभी होगी और ये विश्व में वृद्धिशील बाजार और उद्योगों के लिए स्रोत केंद्र भी प्रस्तुत करेंगे. इसलिए सात अरब की जनसंख्या वाले वर्तमान जगत को स्थिर और स्थाई रखने के लिए इन तीन अरब लोगों के विकास पर सबसे पहले ध्यान देना होगा तथा इनके लिए समुचित रोजगार मुहैया कराने होंगे.

अनेक वर्षों से यह देखने में आया है कि पिछड़े समुदायों को आगे लाने के लिए आरक्षण और दान की नीति अपना ली जाती है. परंतु आरक्षण और दान से स्थायी विकास के स्थान पर अकर्मण्यता और परनिर्भरता जैसे रोग ही पनपते हैं. ऐसी स्थिति में यह पुस्तक विस्तार से यह स्पष्ट करती है कि सरकार, निजीक्षेत्र और समुदाय आपस में निकटता से मिलकर ऐसे सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में काम कर सकते हैं जो दान के बजाय सशक्तीकरण पर आधारित हो. 

इस पुस्तक की यह एक बड़ी विशेषता है कि इसमें एक ओर तो भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की चुनौतियों और अवसरों का आकलन किया गया है तथा दूसरी ओर इस प्रकार के दिशा निर्देश भी दिए गए हैं कि अब तक अनछुए रहे व्यापक तथा विस्तृत ग्रामीण क्षेत्र में उतरने के लिए दुनिया के किसी भी सक्षम उद्यमी को किस प्रकार की कार्यप्रणाली अपनानी चाहिए. नीति निर्माताओं और उद्यमिता क्षेत्र के लिए एक मार्गदर्शक कृति!
खुशहाल व समृद्ध विश्व 
 एपीजे अब्दुल कलाम और सृजन पाल सिंह 
2012
प्रभात प्रकाशन,
4/19 आसफ अली रोड, नई दिल्ली – 110002 
पृष्ठ – 328
मूल्य – 400/-
- भास्वर भारत - दिसंबर 2012- पृष्ठ 59.

2 टिप्‍पणियां:

Sp Sudhesh ने कहा…

यह बड़ी उपयोगी पुस्तक लगी जो पाठकों को विश्व की विषमता का ज्ञान
कराने के साथ उसे बदलने की आवश्यकता को रेखांकित करती है । अर्थ
व्यवस्था की नीतियाँ बनाने वालों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दान नहीं, हो कर्म प्रमुख पथ,
लक्ष्य न आयें, दौड़ेंगे रथ।