भारत की कला परंपरा समग्रता की अवधारणा पर केंद्रित है क्योंकि यहाँ आनंद, रस और सौंदर्य को अखंड माना गया है. किसी भी काल की कला को ले ले, वह अपने समय के विश्वास, उल्लास, उत्सव और संघर्ष को सहजता से अभिव्यक्त करती दीखती है. यह सहजता हमारे कला दर्शन का ही नहीं जीवन दर्शन का भी केंद्रीय मूल्य है. कलाकार का अपना जीवन भी सहज हो, सहज कला के लिए यह भी आवश्यक माना गया है. संभवतः यही कारण है कि अनेक उत्कृष्ट कलाकार सहज जीवन जीने वाले साधु रहे हैं जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से निजता का विसर्जन करते हुए आत्मदान को सिद्ध किया है और अपने लिए नाम तक नहीं कमाया है. जैन कला का इन कला मूल्यों को प्रतिष्ठित करने में बड़ा योगदान रहा. जैन परंपरा को यह श्रेय जाता है कि उसने अत्यंत प्राचीन समय में सचित्र ग्रंथों की रचना की और भारत की चित्रांकन परंपरा को अप्रतिहत रूप से जारी रखा. इस तथ्य पर विस्मय किया जा सकता है कि अनेक मुस्लिम आक्रमणों के तहत हुए ध्वंस और संहार के बीच जैन कला परंपरा ने अपने आपको अक्षुण्ण बनाए रखा.
‘जैन चित्रांकन परंपरा’ (2012) में प्रसिद्ध साहित्यकार और कला समीक्षक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने गहन अध्यवसायपूर्वक इस परंपरा की पहचान कराई है. उच्च कोटि के आर्ट पेपर पर मुद्रित इस बड़े आकार के नयनाभिराम ग्रंथ में लेखक की जीवन साधना रूपायित हुई है. उन्होंने इसमें जैन दर्शन तथा जैन चित्रांकन परंपरा की यथासंभव संपूर्ण जानकारी सहेजना का सफल उद्यम किया है. इसका मुख्य उपजीव्य ग्रंथ ‘आहोर कल्पसूत्र’ है. मुग़ल कलम के पहले आश्रयदाता सम्राट अकबर के काल में निर्मित ‘आहोर कल्पसूत्र’ को लेखक ने एक ऐसी विरल धरोहर माना है जिसका निर्माण मुग़ल कलम से सर्वथा अप्रभावित पारंपरिक जैन शैली में राजस्थान के जालौर जिले की तहसील आहोर में हुआ. लेखक ने विस्तार से पश्चिम भारतीय शैली में निर्मित इसके चित्रों का विवेचन किया है और आँखों से लेकर परिधानों तक के अंकन की विशेषताओं की व्याख्या की हैं.
‘आहोर कल्पसूत्र’ की चित्रावली के अंतर्गत इस ग्रंथ में संजोई गई कृतियाँ अत्यंत आकर्षक और प्रभावी हैं. प्रत्येक प्रतिकृति के नीचे उस चित्र का शीर्षक और संक्षिप्त विवरण दिया गया है. कलाप्रेमियों और संस्कृति के अध्येताओं के लिए अनिवार्य ग्रंथ!
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‘जैन चित्रांकन परंपरा’, लेखक – नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, 2012, प्रकाशक – बेनी माधव प्रकाशन गृह, इंदिरा गांधी वार्ड, हरदा – 461331 (म.प्र.), पृष्ठ – 319, मूल्य – रु.1500
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- भास्वर भारत - नवंबर 2012- पृष्ठ 52.
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