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रविवार, 2 जून 2013

रेखांकनों–सूक्तियों में गाँधी

पिछली शताब्दी के दुनिया भर के चिंतन को जिन महापुरुषों ने स्थायी रूप से प्रभावित किया उनमें महात्मा गांधी का नाम अग्रगण्य है. महात्मा गांधी अपने समय के सर्वाधिक प्रगतिशील चिंतकों में थे. उन्होंने भारत की आत्मा को पहचाना था – अपने अन्वेषण द्वारा. उनके लिए सत्य सर्वोपरि था – ईश्वरस्थानीय. उन्होंने राष्ट्रभक्ति को इतना व्यापक बना दिया था कि विश्व प्रेम और मानव प्रेम तक उसकी परिधि में समा गए थे. उन्होंने अनुभव की प्रामाणिकता तथा कथनी और करनी की एकरूपता पर बल दिया एवं व्यक्ति और समाज को द्वंद्व-संबंध के रूप में नहीं सह-संबंध के रूप में व्याखायित किया – अपने उदाहरण द्वारा चरितार्थ भी. यही कारण है कि जीवानानुभव से निःसृत उनकी सूक्तियाँ व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों का काम करती हैं. 

गांधी चिंतन की प्रासंगिकता 21 वीं सदी में और भी बढ़ गई है क्योंकि आज का मनुष्य सब ओर से लोभ और भय से घिरा हुआ है – बाजार और राजनीति के आतंक के साये में. यही कारण है कि जब किसी भी वेश में गांधी चिंतन वर्तमान पीढ़ी के समक्ष आता है तो वह उससे चमत्कृत भी होती है और  प्रभावित भी. इस दृष्टि से गांधी चिंतन आज भी अपने नए नए पाठों में टटकापन लिए हुए प्रतीत होता है. डॉ जे.पी.वैद्य द्वारा प्रस्तुत माहात्मा गांधी के रेखांकनों और सूक्तियों का संकलन ‘बापू ने कहा था’ (2012) ऐसा ही ताजा टटका पुनर्पाठ है. 174 पृष्ठ की इस नयनाभिराम द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) पुस्तक का हर पृष्ठ बहुमूल्य है – सहेजने लायक है. डॉ जे.पी.वैद्य अत्यंत समर्पित और प्रतिबद्ध गांधीवादी हैं. वे यों तो प्रख्यात चिकित्सक हैं लेकिन कवि और कहानीकार के साथ साथ रेखाचित्र और कार्टूनकार के रूप में भी उन्होंने बड़ी प्रतिष्ठा कमाई है. वे इस बात के लिए चिंतित रहते हैं कि आज के भारतीय समाज और उसके जीवन में गांधी तत्व की कमी होती जा रही है. वे यह भी महसूस करते हैं कि महात्मा गांधी इतने सरल थे कि आज के टेढ़ी सोच वाले मनुष्यों के लिए उन्हें समझ पाना या उनके मार्ग पर चलना असंभव प्रतीत होता है. इसीलिए उनकी उक्तियों को डॉ वैद्य ने रंगीन रेखांकनों एवं कार्टूनों के माध्यम से जन जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है.

‘बापू ने कहा था’ के प्रथम खंड में महात्मा गांधी के लेखन के कुछ अंश संजोए गए हैं जिनमें स्वतंत्रता, प्रेम, सत्याग्रह और अहिंसा जैसे विषयों पर उनकी स्पष्ट मान्यताओं को अभिव्यक्ति मिली है. इससे पता चलता है कि महात्मा गांधी स्वतंत्रता और रामराज्य को पर्याय मानते थे और चाहते थे कि राजनैतिक, आर्थिक और नैतिक स्वतंत्रता रामराज्य के लिए आधारभूत मूल त्रिकोण का काम करें. कहने कि आवश्यकता नहीं है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी गांधी द्वारा परिकल्पित इस त्रिआयामी आजादी को पाना अभी शेष है. आगे गांधी जी का जीवन क्रम और उनके आंदोलन संबंधी सूचनाएं सूचीबद्ध की गई हैं. इस सारी सामग्री को पुस्तक का पूर्व भाग कहा जा सकता है. इसी प्रकार उत्तर भाग में विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेताओं और महापुरुषों की गांधी के प्रति श्रद्धांजलियों को चित्रों के साथ सहेजा गया है. 

पुस्तक का मध्य भाग, जो 102 पृष्ठों का है, डॉ वैद्य द्वारा बनाए गए रेखांकनों और कार्टूनों को समर्पित है. प्रत्येक पृष्ठ पर गांधी की एक सूक्ति भी अंकित की गई है. रेखाचित्रों और सूक्तियों का परस्पर तालमेल अत्यंत आकर्षक और प्रभावी है क्योंकि दोनों एक-दूसरे के संप्रेषण में सहयोग करते दिखाई देते हैं – सहअस्तित्व की धारणा को साकार करते हुए. इन चित्रों और सूक्तियों में गांधी का विश्व दर्शन समाया हुआ है जो अत्यंत सरल, सहज और मानवीय है. उदाहरण के लिए पृष्ठ 91 पर महात्मा गांधी का जो स्केच दिया गया है वह पार्श्व दृश्य है – माथे पर तीन रेखाएँ, हल्की मुस्कान के साथ बोलती सी मुद्रा और चेहरे की मांसपेशियाँ खड़ी समांतर रेखाओं के माध्यम से खिलती हुई सी. नीचे यह उद्धरण कि 
अभय में सब प्रकार के डर का
अभाव होना चाहिए ...
मौत का डर – मारपीट का डर ....
भूख का डर – अपमान का डर ....
लोक लाज का डर – भूत प्रेत का डर ...
किसी क्रोध का डर ....
और इन सब डरों से मुक्ति ही
‘अभय’ है .....
 

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‘बापू ने कहा था’, लेखक – डॉ जे पी वैद्य, 2012, प्रकाशन – अंकुशराव कदम, सचिव, महात्मा गांधी मिशन, एन – 6, सी आई डी सी ओ, औरंगाबाद – 431 003, पृष्ठ – 174, मूल्य – रु.250
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1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हल्कापन है अभय, होने के भारी पन से कहीं दूर।