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सोमवार, 28 नवंबर 2011

’हमारी कुटुंब संस्कति' पर ऋषभदेव शर्मा का व्याख्यान संपन्न

 'हमारी कुटुंब संस्कृति' पर प्रो.ऋषभदेव शर्मा का व्याख्यान संपन्न 

हैदराबाद, २८ नवंबर २०११. 

आज यहाँ भावसार विज़न इंडिया के तत्वावधान में रानीगंज स्थित होटल प्रिया रेसीडेंसी में 'हमारी कुटुंब संस्कृति' विषय पर प्रो.ऋषभ देव शर्मा के विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बोलते हुए प्रो.शर्मा ने विस्तार से आज के सांस्कृतिक संकट की व्याख्या की और यह कहा कि आत्महीनता, प्रदर्शन प्रियता, नक्काल वृत्ति, नग्नता के प्रसार तथा आपसी संबंधों के छीजने का कारण भूमंडलीकृत बाजारवाद में निहित है और इसका सामना करने के लिए हमे अपनी कुटुंब संस्कृति के मूल्यों को पुनः पारिभाषित और चरितार्थ करना होगा. डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने आज की दुनिया में चल रहे सभ्यता-संघर्ष को सर्वस्वीकार्य सामान्य मानव संस्कृति की खोज की प्रक्रिया का हिस्सा मानते हुए यह कहा कि युद्ध और आतंक का अंधेरा शाश्वत नहीं हो सकता  बल्कि मनुष्यता की वह ज्योति ही शाश्वत है जिसकी अंतिम जय में भारतीय मनीषा ने सदा विश्वास प्रकट किया है. उपभोक्‍तावादी समाज की अफरा-तफरी को संयमित करने के लिए उन्होंने भारतीय परंपरा में स्वीकृत पितृ ऋण, ऋषि ऋण और देव ऋण की संकलपना को बहुप्रचारित करने पर जोर दिया.

परिचर्चा के दौरान भारतीय परिवार और विवाह संस्था की प्रासंगिकता से संबंधित एक प्रश्‍न का उत्तर देते हुए प्रो.शर्मा ने सूर्यासावित्री के आख्यान के सहारे यह प्रतिपादित किया कि भारतीय विवाह संस्था लोकतांत्रिक पद्धति पर आधारित है और इसमें पति-पत्‍नी का संबंध मालिकाना न होकर मित्रवत्‌ समर्पणयुक्‍त संबंध माना गया है. उन्होंने सप्‍तपदी तथा स्त्री और पुरुष के वचनों में निहित दायित्व भावना की ओर भी इशारा किया. 

आरंभ में भावसार विज़न इंडिया के अध्यक्ष किशन राव गडाले ने अतिथि वक्‍ता का स्वागत किया. डॉ.शर्मा ने संस्था के सदस्यों को उनकी विविध उपलब्धियों के लिए पुरस्कार भी वितरित किए. इस अवसर पर डॉ.पूर्णिमा शर्मा, डॉ.अरुणा बांगरे, श्रीनिवास मलतकार, श्रीधर लेंडले, अरुण कुमार जवलकर, सुरेश कुमार गडाले, विनोद फुटाने आदि सहित आयोजक संस्था के लगभग पचास सदस्य उपस्थित रहे.  

3 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सच कहा आपने कि युद्ध और आतंक का अंधेरा शाश्वत नहीं हो सकता और भारतीय वैवाहिक संस्कार मालिकाना हक नहीं मित्रवत मिलन का प्रतीक हैं।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सामाजिकता पर कानूनी ग्रहण बहुत अधिक पुरानी बात नहीं है।

Vinita Sharma ने कहा…

पति पत्नी का सम्बन्ध मालिकाना न होकर मित्रवत परस्पर समर्पण युक्त सम्बन्ध माना गया है
संबंधो की ऎसी निष्पक्ष परिभाषा इश्वर साधारण तौर पर दुर्लभ है.इश्वर आपकी सोच को
नित नया प्रकाश दे
विनीता पति पत्नी का सम्बन्ध मालिकाना न होकर मित्रवत परस्पर समर्पण युक्त सम्बन्ध माना गया है
संबंधो की ऎसी निष्पक्ष परिभाषा इश्वर साधारण तौर पर दुर्लभ है.इश्वर आपकी सोच को
नित नया प्रकाश दे
विनीता पति पत्नी का सम्बन्ध मालिकाना न होकर मित्रवत परस्पर समर्पण युक्त सम्बन्ध माना गया है
संबंधो की ऎसी निष्पक्ष परिभाषा इश्वर साधारण तौर पर दुर्लभ है.इश्वर आपकी सोच को
नित नया प्रकाश दे
विनीता पति पत्नी का सम्बन्ध मालिकाना न होकर मित्रवत परस्पर समर्पण युक्त सम्बन्ध माना गया है
संबंधो की ऎसी निष्पक्ष परिभाषा इश्वर साधारण तौर पर दुर्लभ है.इश्वर आपकी सोच को
नित नया प्रकाश दे
विनीता