साहित्य : सृजन और समीक्षा
सूर्य की किरणों के बीच चित्र और निखर आता है।
@प्रवीण पाण्डेय हो सकता है यहाँ प्रासंगिक न लगे लेकिन आपकी टिपण्णी से स्व. हरीराम धीमान चमचा के एक गीत का मुखड़ा याद हो आया ......''सूरज की किरणों ने चाभी भर दी हममें, भोर हुई, निकल पड़े देह को भुनाने हम / हमारा निशाना भूख, भूख के निशाने हम.''
अगली कार्यशाला फ़िलहाल अंतिम लगती है सर जी :)
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सूर्य की किरणों के बीच चित्र और निखर आता है।
@प्रवीण पाण्डेय
हो सकता है यहाँ प्रासंगिक न लगे लेकिन आपकी टिपण्णी से स्व. हरीराम धीमान चमचा के एक गीत का मुखड़ा याद हो आया ......''सूरज की किरणों ने चाभी भर दी हममें, भोर हुई, निकल पड़े देह को भुनाने हम / हमारा निशाना भूख, भूख के निशाने हम.''
अगली कार्यशाला फ़िलहाल अंतिम लगती है सर जी :)
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