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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

निमंत्रण : अज्ञेय जन्मशती समारोह

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में
अज्ञेय जन्मशती समारोह 
30 अप्रैल को


हैदराबाद,23 अप्रैल,2011 . 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा द्वारा संचालित उच्च शिक्षा  और शोध संस्थान तथा स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 30 अप्रैल, शनिवार, को सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में सवेरे साढ़े नौ बजे से ‘अज्ञेय जन्मशती समारोह’ का आयोजन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत ‘अज्ञेय और उनका साहित्य’ विषय पर केंद्रित ‘एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी’ तथा ‘पुस्तक एवं पोस्टर प्रदर्शनी’ आयोजित की जाएगी।

उल्लेखनीय है कि हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद और नई कविता के प्रवर्तक माने गए सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म सौ वर्ष पूर्व 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश  के देवरिया जिले में हुआ था। अज्ञेय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक क्रांतिकारी के रूप में चंद्रशेखर आजाद आदि के साथ सक्रिय रूप से सम्मिलित रहे थे। वे सरदार भगतसिंह को जेल से छुड़ाने की योजना में शामिल होने के अलावा बम बनाने और पिस्तौलों की मरम्मत का कारखाना कायम करने के सिलसिले में 15 नवंबर, 1930 को गिरफ्तार हुए थे। जेल यातना और नजरबंदी के सात वर्षों ने उनके व्यक्तित्व और लेखन को गहरे प्रभावित किया। युद्ध को गलत मानते हुए भी सुरक्षात्मक युद्ध की अनिवार्यता को स्वीकार करते हुए अज्ञेय 1943 से 1945 तक फासिस्ट विरोधी युद्ध में भाग लेने के लिए फौज में रहे। इस अवधि में उन्होंने असम के जन जीवन और संस्कृति का गहन परिचय प्राप्त किया। अज्ञेय ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन किया तथा कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रावृत्त, नाटक, निबंध, संस्मरण और अनुवाद सहित साहित्य की अनेक विधाओं को अपने लेखन द्वारा संपन्न बनाया। उन्हें 1979 में ‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ जिसमें उतनी ही राशि अपने पास से मिलाकर अज्ञेय ने 1980 में समकालीन लेखकों-कवियों के निमित्त ‘वत्सल निधि’ की स्थापना की।’’

अज्ञेय की जन्मशती के अवसर पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन खालसा कॉलेज, मुंबई  के सेवानिवृत्त आचार्य डॉ. त्रिभुवन राय करेंगे तथा हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के डॉ. सच्चिदानंद चतुर्वेदी बीज वक्तव्य देंगे। प्रख्यात समाजभाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करेंगे। अन्य सत्रों की अध्यक्षता डॉ. राधेश्याम  शुक्ल, प्रो.टी. मोहन सिंह तथा प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी करेंगे। समाकलन वक्तव्य और आशीर्वचन  अंग्रेजी एवं भारतीय भाषा विश्वविद्यालय के प्रो. जगदीश  प्रसाद डिमरी और प्रो. एम. वेंकटेश्वर देंगे। डॉ. विष्णु भगवान शर्मा प्रायोजक संस्था का प्रतिनिधित्व करेंगे।

इस अवसर पर दो विचार सत्रों में डॉ. आलोक पांडेय, प्रो. एम. वेंकटेश्वर, प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. घनश्याम, डॉ. पी. श्रीनिवास राव, डॉ. मृत्युंजय  सिंह, डॉ. जी. नीरजा, डॉ. साहिरा बानू, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. गोरखनाथ तिवारी और प्रो. ऋषभदेव शर्मा अज्ञेय के जीवन, व्यक्तित्व और साहित्य के विविध पक्षों पर शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। 

इस संगोष्ठी में अज्ञेय की रस चेतना, काव्यभाषा, संस्कृति चिंतन और साहित्यिक मान्यताओं पर मौलिक विचार-विमर्श  होगा।  सभी साहित्य प्रेमियों से इस आयोजन में उपस्थित रहने का अनुरोध  है।


समारोह के एक विशेष आकर्षण के रूप में अज्ञेय के साहित्य और उनकी प्रमुख रचनाओं के अंशों के 100 से अधिक पोस्टरों की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जा रहा है जो अज्ञेय और उनकी रचनाधर्मिता को समझने के लिए बहुत उपयोगी है.

कृपया अज्ञेय जन्मशती समारोह के अंतर्गत आयोजित इस एकदिवसीय 'राष्ट्रीय संगोष्ठी 'और 'पुस्तक एवं पोस्टर प्रदर्शनी 'में पधार कर अनुगृहीत करें।

                             -ऋषभ देव शर्मा  

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत बहुत शुभकामनायें, सुफल आयोजन के लिये।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अज्ञेय के बारे में जानकारी का एक मौका मिलेगा। आशा है स्र्वंति का विशेषांक भी निकले :)

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@ प्रवीण पांडेय

शुभकामनाओं के प्रति आभारी हूँ.

दरअसल इस बहाने कुछ पढना हो जाता है बस. बकौल अज्ञेय -

''स्मरण को पाथेय बनने दो :
कभी तो अनुभूति उमड़ेगी
प्लवन का सान्द्र घन भी बन?''

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@cmpershad

'स्रवंति' का विशेषांक तो खैर निकलेगा ही, आपका सहयोग रहे तो पुस्तक भी निकल सकती है.

रही बात जानकारी की, तो किसी को भी भला कब कोई पूरा जान पाता है ; और अज्ञेय तो फिर अपनी 'असाध्य वीणा' की तरह ठहरे -

''सहसा वीणा झनझना उठी
संगीतकार की आँखों में
ठंडी पिघली ज्वाला सी झलक गई -
रोमांच एक बिजली सा सबके तन में दौड़ गया.
अवतरित हुआ संगीत
स्वयंभू
जिसमें सोता है अखंड
ब्रह्मा का मौन
अशेष प्रभामय
डूब गए सब एक साथ.
सब अलग अलग एकाकी पार तिरे.''

Suman ने कहा…

नमस्ते सर,
हमेशा मिलाप में आपके बारे में पढ़ा है पर
ब्लॉग पर आज पहली बार मुलाकात हो रही है!
बहुत अच्छा लगा आप मेरे ब्लॉग पर आये !
बहुत धन्यवाद ! इस पोस्ट को पढ़ते हुए ....
अनुसरण करूंगी आपका ब्लॉग !

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

प्रो.ऋषभ देव शर्मा जी,
आपके संगोष्ठी निदेशन में ‘अज्ञेय जन्मशती समारोह’पूर्णतः सफलतापूर्वक सम्पन्न होगा...आपको अग्रिम शुभकामनायें...