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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

केदारनाथ अग्रवाल की कविता में प्रेम _व्याख्यान_चित्रावली



चित्र सौजन्य : संपत देवी मुरारका, अप्पल नायुडु और च.इंद्राणी : 21 अप्रैल 2011   

6 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बढिया चित्र सरजी। इस गोष्ठी की सफलता में आप का सारगर्भित व्याख्यान रहा जिससे हम जैसों को केदार नाथ अग्रवाल को जानने का मौका मिला॥

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

नमस्कार. दरअसल प्रगतिवादियों ने छायावाद से चिढ के कारण प्रेम को बहिष्कृत करके अपनी कविता को स्वयं ही विकलांग बनाने का अपराध किया था. केदार जी उस विकलांगता से बहुत दूर हैं और प्रेम के रूपाश्रित / दैहिक स्वरूप को अपने काव्य में पत्नी प्रेम / गार्हस्थ्य प्रेम के अकुंठ रूप में प्रतिष्ठित करते हैं. मुझे उनकी यह कुंठाहीनता सदा आकर्षित करती रही है.

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छे चिंत्र हैं ..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

@आदरणीय ऋषभ देव जी, आपने यह बात अपने व्याख्यान में भी उजागर की थी, मैं अपने ब्लाग पर लिखे लेख में इस बात को उजागर करने से चूक गया। अच्छा किया कि आपने उसे याद दिला दिया। आभार। हमारे भी चित्र खूम आए हैं :)

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@संगीता पुरी

आगमन और टिप्पणी के लिए आभारी हूँ.

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@cmpershad

आते रहिए मान्यवर, तो फिर हर फोटो में आप ही आप नज़र आएँगे.

आपने इस व्याख्यान पर अपने ब्लॉग पर जो कुछ लिखा है उसमें सारी बातें आ गई हैं. छोटी मोटी कुछ बातें छूट भी गई हों तो खास फर्क पड़ने वाला नहीं.