`रामायण संदषZन` के तुलसी जयंती अंक पर अनेक सुधी पाठकों और विद्वान लेखकों के पत्र प्राप्त हुए हैं। इन पत्रों में जहा¡ पत्रिका को शुभकामनाए¡ दी गई हैं, वहीं राम, मानस और तुलसी की प्रासंगिकता पर खासी चर्चा भी की गई है। डॉण् गणेष दत्त सारस्वत, डॉण् सूर्यदीन यादव, मुनीद्रजी, डॉण् परमलाल गुप्त, डॉण् बलविंदर कौर, डॉण् सियाराम तिवारी, डॉण् स्वर्ण किरण, डॉण् दीनानाथ शरण, डॉण् शरद नारायण करे, दामोदर स्वरूप विद्रोही, भगवानदास एजाज, डॉण् राममूर्ति त्रिपाठी, आचार्य भगवत दुबे, डॉण् गायत्री शरण मिश्र मराल जैसे शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाओं से हमें काफी बल मिला है। ये सारी प्रतिक्रियाए¡ अविकल रूप में इंटरनेट पर हमारे ब्लॉग 360ण्लंीववण्बवउध्तंउंलंदेंंदकंतेींद पर उपलब्ध हैं। स्थानाभाव के कारण हम इन्हें यहा¡ प्रकाषित नहीं कर पा रहे हैं। डॉण् कविता वाचक्नवी ने तो अत्यंत आत्मीयता और उत्साह के साथ `वाक्` पत्रिका से डॉण् रमेष कुंतल मेघ के आलेख की ई-प्रति प्रेषित कर दी है, जिसे इस ब्लॉग पर साभार उद्धृत किया गया है। हम आप सबके प्रति कृतज्ञ हैं। आपका यह स्नेह और मार्गदषZन आगे ही मिलता रहे, यही कामना है : सुहृद सुजान सुसाहिबहि, बहुत कहब बिड़ खोरि।
आयसु देइअ देव अब, सबइ सुधारी मोरि।। (मानस/2/300)।
- संपादक
वर्ष 22 भाद्रपद शुक्ल पक्ष 9, संवत् 2064 अंक : 2
21 सितंबर, 2007
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें