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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

असहमति बुद्धिजीवियों का स्थायी भाव है!


चित्र-परिचय :
1 . साहित्य मंथन की 'साहित्य-संध्या' के अवसर पर लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, डॉ. ऋषभ देव शर्मा और डॉ. पूर्णिमा शर्मा. 
2 . 'साहित्य-संध्या' के अवसर पर व्यंग्य-वाचन करते हुए भगवान दास जोपट. साथ में हैं गुरु दयाल अग्रवाल, डॉ.देवेन्द्र शर्मा, ज्योति नारायण, पुरवा और गीतिका कोम्मूरी.


असहमति बुद्धिजीवियों का स्थायी भाव है! 
हैदराबाद, 10  दिसंबर 2011 .

बुद्धिजीवी बुद्धि खाकर जीने वाले ऐसे जीवों को कहा जाता है जो दिन-रात दुनिया-जहान की चिंता में घुल-घुल कर दुबले होते रहते हैं. इन्हें औरों से अलग पहचाना जा सकता है क्योंकि ये दूसरों से अलग ही रहते हैं. आम तौर से चेहरे  पर विराजमान गंभीर  मनहूसियत और बढ़ी हुए फ्रेंच दाढी इन्हें सामान्य लोगों से अलग करती हैं. हर स्वयंसिद्ध सत्य भी इन्हें बिना बौद्धिक  कसरत के ग्राह्य नहीं होता इसलिए आप इन्हें कभी भी कहीं भी अंतहीन बहसों में उलझा पा सकते हैं. असहमति बुद्धिजीवियों का स्थायी भाव है. 

ये उद्गार वरिष्ठ व्यंग्यकार  भगवान दास जोपट ने यहाँ 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में संपन्न 'साहित्य-संध्या' में अपना ''बुद्धिजीवी'' शीर्षक व्यंग्य प्रस्तुत करते हुए प्रकट किए.

साहित्य-संध्या में विनीता शर्मा, गीतिका कोम्मुरी, ज्योति नारायण, पुरवा, मनोरमा अग्रवाल, डॉ. पूर्णिमा शर्मा , डॉ. देवेन्द्र शर्मा, गुरुदयाल अग्रवाल, पी एस नारायण, डॉ. ऋषभदेव शर्मा, भगवान दास जोपट , लक्ष्मी नारायण अग्रवाल तथा संयोजक डॉ. बी बालाजी ने समसामयिक विषयों पर विमर्श के साथ विविध रसों की कविताएँ पढ़ीं.
            



2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विकास का आधार भी है असहमति।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हम तो समझ रहे थे कि फ़ेंचे दाढ़ी केवल प्रोफ़ेसरों के होती है:) अच्छा हुआ जोपट जी ने आगाह कर दिया॥