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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

विदा २०११

यह लो, एक बरस बीत गया

हम प्रेम की प्रतीक्षा में
बस लड़ते ही रह गए
साल भर

इसी तरह गँवा दिए
साल दर साल
लड़ते लड़ते
प्रेम की प्रतीक्षा में

बहुत खरोंचें दीं हम दोनों ने
एक दूसरे को

बहुत अपराध किए
बहुत सताया एक दूजे को
एक दूजे का प्यार जानते हुए भी

समय तेज़ी से दौड़ने लगा है
पिछले हर बरस से तेज

इस तीव्र काल प्रवाह में
कल हो न हो
फिर समय मिले न मिले

क्षमा माँग लूँ तुमसे
तुम जो धरती हो
तुम जो आकाश हो
तुम जो जल हो, वायु हो
तुम जो अग्नि हो, प्राण हो ,प्रेम हो
मैंने तुम्हें बहुत सताया , बहुत बहुत सताया
मेरे अपराधों को क्षमा करना

नए वर्ष में
फिर मिलेंगे हम
नए हर्ष से

3 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बहुत सुंदर,,, आपकी इस क्षमा प्रार्थना में हमें भी जोड लीजिए॥ नववर्ष की शुभकामनाएं॥

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वातावरण बनाने में ही सारा समय बीत जाता है, सुख प्रतीक्षा में ही सूख जाता है।

Jeevan Gatha ने कहा…

http://merijeevangatha.blogspot.com/