आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी की मासिक व्याख्यानमाला के सिलसिले में कल अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर जी का अज्ञेय की जन्मशती के संदर्भ में व्याख्यान था. वे ''नवप्रयोगवादी सर्जक अज्ञेय'' पर लगभग ६५ मिनट जमकर बोले. खास तौर पर ये बिंदु उभारे - १.अज्ञेय अपने समय के बेहद लोकप्रिय साहित्यकार रहे - खासकर बतौर उपन्यासकार . २. वे प्रयोगवादी नहीं, नवप्रयोगधर्मी युगप्रवर्तक लेखक थे. ३. 'असाध्य वीणा' सत्य के विविध कोणों का प्रतिपादन करने वाली कविता है जो देरिदा के बहुपाठीयता के सिद्धांत के अनुरूप है. ४. अज्ञेय का सारा साहित्य बौद्धिक है जो अतिशय भावुकता के छायावादी मुहावरे का प्रतिवाद है. ५. अज्ञेय को समझना कठिन है. उनके पास जाने में खतरा है. ६. उनका साहित्य व्यक्तित्व और स्वतंत्रता की खोज का साहित्य है. ७. मछली, द्वीप और पानी उनके प्रिय प्रतीक हैं. ८. 'रोज़' उनकी कथानकशून्य कहानी है जो ऊब और एकरसता का दस्तावेज़ है. ९. उन्होंने प्रकृति को बौद्धिक के नज़रिए से देखा है. १०. कविता हो या उपन्यास वे समर्पण के क्षण को जीने पर जोर देते हैं. ११.'शेखर' का सारा जीवन स्वातंत्र्य की खोज है. वह मातृरति नहीं,मातृघृणा ग्रंथि से संचालित है. १२. शेखर-शशि और भुवन-रेखा परस्पर पूरक हैं. १३. हर विधा में नई ज़मीन तोड़ने के कारण अज्ञेय नवप्रयोगधर्मी सर्जक हैं. अपुन को प्रो. सत्यनारायण जी ने अध्यक्षता सौंपी थी;सो कुछ तो टिप्पणी करना लाजमी हो गया. अथ ऋषभ उवाच- १.अज्ञेय की नव्यप्रयोगधर्मिता इस अर्थ में ग्राह्य है कि उन्होंने प्रगतिशील आंदोलन से अलग राहें खोजीं. २. वे प्रयोग की अपेक्षा व्याख्यावादी अधिक प्रतीत होते हैं. ३. गैर रोमानी भावबोध और विचारतत्व के आग्रह ने उनकी साहित्य-लय को इस तरह 'प्रशमित' कर दिया है कि विद्रोही कलाकार होने के बावजूद उनका साहित्य किसी प्रकार के सामाजिक परिवर्तन में सहायक बनता प्रतीत नहीं होता. ४. सामाजिक परिवर्तन उस अर्थ में उनका सरोकार भी नहीं है. ५. उनके लेखन पर मुग्ध हुआ जा सकता है, उसे सराहा जा सकता है और एन्जॉय किया जा सकता है - वे आनंद की स्रष्टि करते हैं. ६.अपने बहुविध अनुभवों और बहुपठ होने के कारण वे विलक्षण रूप से वैविध्यपूर्ण रच सके. ७. वे विलक्षण शब्दचिन्तक और साहित्य-भाषा के जादूगर हैं. ८.उनके पास क्लासिक भाषा भी है जिसे वे गद्य में आजमाते हैं और लोकजीवन से गृहीत भाषा भी है जिसके सहारे वे अपनी काव्यभाषा को लोकाभिमुख बनाते हैं. लेकिन एक जागरूक श्रोता की इस जिज्ञासा का किसी के पास उत्तर नहीं था कि ''जो अज्ञेय क्रांतिकारी दल के सक्रिय कार्यकर्ता रहे थे उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की फ़ौज में नौकरी करना कैसे गवारा किया?'' ! |
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रविवार, 27 मार्च 2011
ब्रिटिश फ़ौज में क्यों रहे अज्ञेय?
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4 टिप्पणियां:
अज्ञेय के बारे में कुछ और ज्ञान बढ़ा। उत्तर की प्रतीक्षा हमें भी है।
धन्यवाद जी !
विलक्षण शब्दचिन्तक और साहित्य-भाषा के जादूगर अज्ञेय के बारे में सुंदर विश्लेषण दिया हैं .
अज्ञेय के बारे में कुछ और ज्ञान बढ़ा।
` सन १९४३-४६ में फाँसीवादी बिचारधारा के विरोध मे , ब्रिटिश सेना में भरती होकर सैनिक जीवन जिया। '
यह विचार मिले हिंदीकुंज ब्लाग पर :)
संक्षेप में दिये गये आप के ’बिन्दु बिन्दु विचार’ अच्छे लगे ।
जनसत्ता अखबार में अपने कौलम ’अनन्तर’ में आज ओम थानवी जी ने भी इस विषय पर लिखा है ।
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