रंगपर्व मंगलमय हो! चौवन बार होली आई-गई है अब तक मेरे आंगन,गली-मुहल्ले में. रंग - तरह तरह के रंग बहुत अच्छे लगते हैं मुझे. भींजना बचपन से पसंद है मुझे - मीन लग्न है न. गुझिया और पकौड़े - दोनों मेरी कमजोरी हैं. ढोल मुझे सुहावने लगते हैं - दूर ही नहीं नज़दीक के भी. पर मैंने कभी होली खुलकर नहीं खेली - बचपन से घरघुस्सू रहा. आभिजात्य ओढ़कर दूर से देखा किया इस लोकोत्सव को. पर भीतर से कभी बेरंगा और अनभींजा भी नहीं रहा. इक्का-दुक्का ही सही, मेरे पास भी हैं होली की कुछ यादें. उन्हीं यादों का वास्ता देकर आज अपने हर दोस्त को आवाज़ लगा रहा हूँ : आओ गले मिलें! आओ नाचें गाएँ!! आओ मनचीता करें!!! आओ जीने की खातिर मरें!!!! पर सब अपने अपने रंग में डूबे हैं. जानते हैं, मैं किनारे खड़ा रहूँगा- तैरना नहीं आता न. पर डूब तो सकता हूँ. लो, मैं तुम्हारे रंग के सागर में छलाँग लगा रहा हूँ - डूबने की खातिर. आइए, हम सब एक साथ होली के रंगों में सराबोर हो जाएँ. सतरंगी शुभकामनाओं सहित ऋषभ आपका |
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शनिवार, 19 मार्च 2011
रंगपर्व मंगलमय हो!
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4 टिप्पणियां:
होली में उन्मुक्त हो आनन्दित होने का अवसर है।
होली के इस मंगल पर्व पर आनंद के रंगों में डूब जायें :)
नमस्ते सर
बहुत सुंदर कविता
होली के सुअवसर पर आप और आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाई
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