अभी पिछले शुक्रवार की ही तो बात है. शरद पित्ती जी के आवास पर 'त्रिवेणी' का आयोजन था. दरअसल साहित्य,संगीत और कला की त्रिवेणी के आयोजन की प्रथा बद्री विशाल पित्ती जी ने शुरू की थी - छह ऋतुओं के छह आयोजन.
यह आयोजन वसंत ऋतु का था. पहले अजित गुप्ता जी ने वसंत पर कुछ ललित गद्य सा सुनाया. फिर के. ओ. करनी जी ने एलोरा की गुफाओं पर प्रस्तुतीकरण दिखाया - समझाया. अच्छा था; रोचक भी. लेकिन कार्यक्रम के तीसरे चरण में डॉ. अनुपमा कैलाश, डॉ. यशोदा ठाकुर, पूर्वाधनश्री, उषाकिरण, पूजिता कृष्ण ज्योति और गिरिजा किशोर ने विलासिनी-नाट्यम प्रस्तुत किया तो 'एक अनाहत दिव्य नाद में श्रद्धायुत मनु बस तन्मय थे' जैसी दुर्लभ अनुभूति हुई. नृत्य-प्रस्तुति का विषय ही ऐसा था - शिव तांडव.
पहले आनंद तांडव - शिव और विष्णु ब्रह्मचारी और मोहिनी के वेश में ऋषियों के आश्रम में पहुँचते हैं. ऋषि पत्नियाँ मुग्ध होती हैं और ऋषिगण क्रुद्ध. वे आहुतियों से सिंह , सर्प और अग्नि आदि को प्रकट करके शिव पर आक्रमण करते हैं और शिव इन सबको वश में कर लेते हैं; अपस्मार को गिराकर उसके ऊपर आनंद तांडव करते हैं और अग्निपुंजों को पकड़ते रहते हैं. यही तो नटराज की मूर्ति है!
फिर उग्र तांडव - पहला प्रसंग काम दहन का और दूसरा यमराज से मार्कंडेय की रक्षा का.
और फिर ऊर्ध्व तांडव - पहला प्रसंग इंद्रसभा में शिव और काली की स्पर्द्धा का. जब काली की चुनौती बढ़ती ही जाती है तो शिव अपने एक पाँव को सर तक उठा कर नृत्य करते हैं और काली शीलवश ऐसा करने में संकोच करती हैं तथा पार्वती के रूप में आ जाती हैं. दूसरा प्रसंग अर्धनारीश्वर तांडव का.
पूरा परिवेश ही मानो ''प्रणमत पशुपति मखिल पतिं '' की ताल पर तांडव के आनंद में भींज गया था!
3 टिप्पणियां:
तांडव पर सरस चर्चा।
बद्री विशाल पित्ति जी ‘कल्पना’ पत्रिका के लिए ख्याति पा ही चुके थे। उनके त्रिवेणी कार्यक्रम के लिए स्थानीय लोग प्रतीक्षारत रहते थे। अब उनके पुत्र शरद पित्ति ने यह बीडा उठाया है कि पिता के काम को आगे बढाएं तो यह स्तुतीय है॥
शरद पित्ती जी के आवास पर 'त्रिवेणी' का आयोजन में हम नहीं आने पर भी हम देखा जैसा लग रहा हैं !
आप की यह बात से
(""पूरा परिवेश ही मानो ''प्रणमत पशुपति मखिल पतिं '' की ताल पर तांडव के आनंद में भींज गया था!""")
हमारे मन में भी त्रिवेणी तांडव की नृत्य के प्रती निमग्न करवायें आपने ..
बहुत बहुत धन्यवाद जी!!!
शिव तांडव की नृत्य पर सरस चर्चा के लिए आभारी हूँ !!
शरद पित्ती जी को भी धन्यवाद सहित शुभ-कामनाएँ!!!
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