हैदराबाद, २७ मार्च २००९ ।
"हंगरी की जनता को अपनी भाषा से अत्यधिक लगाव है। वह अपनी भाषा को सम्मान का प्रतीक मानती है इसीलिए उसने उसे बचा कर रखा है तथा सभी स्तरों पर सारे काम काज वहां हङ्गेरियन भाषा में ही किये जाते हैं। प्रारम्भिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की सभी विषयों की शिक्षा हङ्गेरियन में ही दी जाती है - चाहे वह अर्थ शास्त्र हो या भौतिक विज्ञान। वहां के छात्र भारत और भारतीय संस्कृति को समझने के लिए अत्यंत समर्पण भाव से हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन करते हैं। हंगरी के लोगों को हिंदी सीखने में अधिक कठिनाई नहीं होती और वे जल्दी ही अधिकार पूर्वक हिंदी में वार्तालाप करना सीख जाते हैं॥ मैं भारत की अपनी यात्राओं में सर्वत्र हिंदी में ही बोलती हूँ। और मेरी राय है कि हिंदी के सम्बन्ध में असुरक्षा भाव नहीं रखना चाहिए।"
ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में आयोजित विशेष कार्यक्रम 'साहित्यकारों से गुफ्तगू' में नगरद्वय के विविध भाषाभाषी लेखकों से बात करते हुए तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए डॉ.मारिया नेज्यैशी ने व्यक्त किये. डॉ. मारिया नेज्यैशी हंगरी के युटोस लोरांड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर हैंतथा इन दिनों भारत प्रवास पर हैं. उनके नगरागमन पर आयोजित इस कार्यक्रम में हैदराबाद के हिंदी सेवियों और रचनाकारों की ओर से पुस्तकें समर्पित कर उनका सम्मान किया गया. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सचिव के.विजयन ने सभा-चिह्न से अलंकृत शाल पहनाकर डॉ.मारिया नेज्यैशी का अभिनन्दन किया.
आयोजन की अध्यक्षता करते हुए 'स्वतंत्र वार्ता ' के सम्पादक डॉ.राधे श्याम शुक्ल ने यूरोप में हंगरी तथा भारत में हैदराबाद की तुलना करते हुए कहा कि ये दोनों ही अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अपने अपने क्षेत्र में दिल के समान माने जाते हैं. अतः यह आयोजन दो दिलों के मिलन जैसा आह्लादकारी और रोमांचक है. उन्होंने भाषा, साहित्य और संस्कृति के परस्पर संबंधों की चर्चा करते हुए बल देकर यह कहा कि भारतीयों को हंगरी से भाषा प्रेम और सांस्कृतिक स्वाभिमान की प्रेरणा लेनी चाहिए.
आरम्भ में मुख्य अतिथि डॉ. मारिया नेज्यैशी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार, शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के सम्बन्ध में कई प्रकार की जिज्ञासाएँ प्रकट कीं जिनका समाधान करते हुए उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने हिंदी भाषा आन्दोलन के इतिहास, लक्ष्य, स्वरूप और संभावनाओं पर प्रकाश डाला. डॉ. मारिया नेज्यैशी ने हिंदी प्रचार में महिलाओं की भूमिका तथा द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी की पाठ्य पुस्तकों के निर्माण की प्रक्रिया में विशेष रुचि प्रकट की.
'गुफ्तगू' के दौरान डॉ.कविता वाचक्नवी, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. धर्म पाल पीहल और डॉ. पी माणिक्याम्बा ने मुख्य अतिथि से हंगरी भाषा, वहां के जनजीवन, रीति रिवाज़, साहित्य की प्रवृतियों, साहित्यकारों के सम्मान तथा हिंदी सीखने की सुविधा और बाधा जैसे विविध विषयों पर सवाल किए.
बातचीत में डॉ.तेजस्वी कट्टीमनी, डॉ. बी बालाजी, डॉ.रोहिताश्व, डॉ.कविता वाचकनवी, डॉ.रेखा शर्मा, डॉ..बलविंदर कौर, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.कांता बौद्ध, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल,, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. अहिल्या मिश्र, संपत देवी मुरारका, डॉ. करण सिंह ऊटवाल , सीमा मेंडोस, श्रीनिवास सोमानी, आशादेवी सोमानी, पुष्पलता शर्मा, सविता सोनी, उमा देवी सोनी, डॉ.सुरेश दत्त अवस्थी. डॉ.आनंद राज वर्मा, डॉ.भास्कर राज सक्सेना, डॉ.विजय कुमार जाधव, के.नागेश्वर राव, रामकृष्णा तथा भगवान दास जोपट आदि ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.खुर्शीदा बेगम ने गीत प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम के संयोजक तथा उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाधाक्ष्य प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी के धन्यवाद प्रस्ताव के उपरांत ''साहित्यकारों से गुफ्तगू'' का यह विशेष आयोजन युगादि की शुभकामनाओं के आदान प्रदान के साथ संपन्न हुआ.
"हंगरी की जनता को अपनी भाषा से अत्यधिक लगाव है। वह अपनी भाषा को सम्मान का प्रतीक मानती है इसीलिए उसने उसे बचा कर रखा है तथा सभी स्तरों पर सारे काम काज वहां हङ्गेरियन भाषा में ही किये जाते हैं। प्रारम्भिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की सभी विषयों की शिक्षा हङ्गेरियन में ही दी जाती है - चाहे वह अर्थ शास्त्र हो या भौतिक विज्ञान। वहां के छात्र भारत और भारतीय संस्कृति को समझने के लिए अत्यंत समर्पण भाव से हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन करते हैं। हंगरी के लोगों को हिंदी सीखने में अधिक कठिनाई नहीं होती और वे जल्दी ही अधिकार पूर्वक हिंदी में वार्तालाप करना सीख जाते हैं॥ मैं भारत की अपनी यात्राओं में सर्वत्र हिंदी में ही बोलती हूँ। और मेरी राय है कि हिंदी के सम्बन्ध में असुरक्षा भाव नहीं रखना चाहिए।"
ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में आयोजित विशेष कार्यक्रम 'साहित्यकारों से गुफ्तगू' में नगरद्वय के विविध भाषाभाषी लेखकों से बात करते हुए तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए डॉ.मारिया नेज्यैशी ने व्यक्त किये. डॉ. मारिया नेज्यैशी हंगरी के युटोस लोरांड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर हैंतथा इन दिनों भारत प्रवास पर हैं. उनके नगरागमन पर आयोजित इस कार्यक्रम में हैदराबाद के हिंदी सेवियों और रचनाकारों की ओर से पुस्तकें समर्पित कर उनका सम्मान किया गया. दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सचिव के.विजयन ने सभा-चिह्न से अलंकृत शाल पहनाकर डॉ.मारिया नेज्यैशी का अभिनन्दन किया.
आयोजन की अध्यक्षता करते हुए 'स्वतंत्र वार्ता ' के सम्पादक डॉ.राधे श्याम शुक्ल ने यूरोप में हंगरी तथा भारत में हैदराबाद की तुलना करते हुए कहा कि ये दोनों ही अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अपने अपने क्षेत्र में दिल के समान माने जाते हैं. अतः यह आयोजन दो दिलों के मिलन जैसा आह्लादकारी और रोमांचक है. उन्होंने भाषा, साहित्य और संस्कृति के परस्पर संबंधों की चर्चा करते हुए बल देकर यह कहा कि भारतीयों को हंगरी से भाषा प्रेम और सांस्कृतिक स्वाभिमान की प्रेरणा लेनी चाहिए.
आरम्भ में मुख्य अतिथि डॉ. मारिया नेज्यैशी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार, शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के सम्बन्ध में कई प्रकार की जिज्ञासाएँ प्रकट कीं जिनका समाधान करते हुए उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने हिंदी भाषा आन्दोलन के इतिहास, लक्ष्य, स्वरूप और संभावनाओं पर प्रकाश डाला. डॉ. मारिया नेज्यैशी ने हिंदी प्रचार में महिलाओं की भूमिका तथा द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी की पाठ्य पुस्तकों के निर्माण की प्रक्रिया में विशेष रुचि प्रकट की.
'गुफ्तगू' के दौरान डॉ.कविता वाचक्नवी, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. धर्म पाल पीहल और डॉ. पी माणिक्याम्बा ने मुख्य अतिथि से हंगरी भाषा, वहां के जनजीवन, रीति रिवाज़, साहित्य की प्रवृतियों, साहित्यकारों के सम्मान तथा हिंदी सीखने की सुविधा और बाधा जैसे विविध विषयों पर सवाल किए.
बातचीत में डॉ.तेजस्वी कट्टीमनी, डॉ. बी बालाजी, डॉ.रोहिताश्व, डॉ.कविता वाचकनवी, डॉ.रेखा शर्मा, डॉ..बलविंदर कौर, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.कांता बौद्ध, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल,, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. अहिल्या मिश्र, संपत देवी मुरारका, डॉ. करण सिंह ऊटवाल , सीमा मेंडोस, श्रीनिवास सोमानी, आशादेवी सोमानी, पुष्पलता शर्मा, सविता सोनी, उमा देवी सोनी, डॉ.सुरेश दत्त अवस्थी. डॉ.आनंद राज वर्मा, डॉ.भास्कर राज सक्सेना, डॉ.विजय कुमार जाधव, के.नागेश्वर राव, रामकृष्णा तथा भगवान दास जोपट आदि ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.खुर्शीदा बेगम ने गीत प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम के संयोजक तथा उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाधाक्ष्य प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी के धन्यवाद प्रस्ताव के उपरांत ''साहित्यकारों से गुफ्तगू'' का यह विशेष आयोजन युगादि की शुभकामनाओं के आदान प्रदान के साथ संपन्न हुआ.
Posted By कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee to "हिन्दी भारत" at 3/27/2009 07:37:00 PM
2 टिप्पणियां:
"हंगरी की जनता को अपनी भाषा से अत्यधिक लगाव है। वह अपनी भाषा को सम्मान का प्रतीक मानती है इसीलिए उसने उसे बचा कर रखा है"
हंगेरी की इस लेखिका से क्या हम कुछ प्रेरणा ले सकते है???
सफल कार्यक्रम के लिए बधाई।
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