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मंगलवार, 24 मार्च 2009

राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ शताब्दी समारोह


दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में
राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ शताब्दी समारोह संपन्न


हैदराबाद, 24 मार्च 2009.


इस वर्ष राष्ट्रकवि डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जन्म शताब्दी मनाई जा रही है। दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को हुआ था। उन्हें हिंदी साहित्य में उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि माना जाता है। भावुक राष्ट्रीयता, दार्शनिक चिंतन और कामाध्यात्म से संपन्न उनकी ‘हुंकार’, ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमिट धरोहर हैं। उनके काव्य नाटक ‘उर्वशी’ को 1972 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कृति ‘संस्कृति के चार अध्याय’ भारत की सामासिक संस्कृति के विकासक्रम की व्याख्या करनेवाला अद्वितीय ग्रंथ है।



देशभर में ‘दिनकर शताब्दी’ के अंतर्गत आयोजित समारोहों की इस कडी में यहाँ उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में एकदिवसीय साहित्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया।


आरंभ में संस्थान के आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए आवेग, वाग्मिता, आक्रोश, व्यंग्य और सौंदर्यबोध जैसे आयामों की कसौटी पर 'दिनकर' के काव्य के मूल्यांकन की आवश्यकता बताई।


दीप प्रज्वलन द्वारा कार्यक्रम का उद्घाटन करने के उपरांत ‘स्वतंत्र वार्ता’ के संपादक, मुख्य अतिथि डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने ध्यान दिलाया कि ‘दिनकर’ अपनी काव्य कृतियों में भारतीय इतिहास और मिथकों से कथासूत्र ग्रहण करके उनके माध्यम से आधुनिक युग के प्रश्नों की व्याख्या करते हैं। उन्होंने ‘दिनकर’ को प्रेम और युद्ध का ऐसा कवि स्वीकार किया जिसकी आस्था मानवधर्म और वैश्विकता में है।



समारोह की अध्यक्षता करते हुए आर्ट्स कालेज, उस्मानिया विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि ‘दिनकर’ आवेगपूर्ण राष्ट्रीयता के साथ गहन सांस्कृतिक चिंतन को अभिव्यक्त करनेवाले ऐसे कवि हैं जिन्होंने आपद्धर्म के रूप में युद्ध के औचित्य का दृढ़तापूर्वक प्रतिपादन किया है।



इस अवसर पर अर्पणा दीप्ति ने दिनकर के व्यक्तित्व और विचारधारा, डॉ. पी.श्रीनिवास राव ने उनकी कृति ‘कुरुक्षेत्र’, डॉ. बलविदंर कौर ने ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, डॉ. जी. नीरजा ने ‘उर्वशी’ और डॉ. मृत्युंजय सिंह ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर केंद्रित आलेख प्रस्तुत किए तो डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल ने ‘दिनकर की डायरी’ के विविध प्रसंगों पर प्रकाश डाला।



समारोह के दौरान हेमंता बिष्ट, कैलाशवती, अंजली मेहता, सुचित्रा, जी. श्रीनिवास राव, एस. वंदना, संगीता, कुतुबुद्दीन और एस. इंदिरा ने राष्ट्रकवि की विभिन्न कृतियों से ली गई कतिपय प्रतिनिधि और प्रसिद्ध रचनाओं का भावपूर्ण शैली में वाचन किया।


चर्चा परिचर्चा को विजयलक्ष्मी, हेमलता, एन. वंदना, रऊफ मियाँ, भगवान, रीना झा, वैभव भार्गव, ए.जी. श्रीराम, के. नागेश्वर राव, ज्योत्स्ना कुमारी तथा भगवंत गौडर आदि ने अपनी जिज्ञासाओं से जीवंत बनाया|

3 टिप्‍पणियां:

दर्पण साह ने कहा…

akpe post se dinkar ji ki ek vilupt kavita yaad ho aiye:
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।
दुह-दुह कर जाति गाय की निजतन धन तुम पा लो
दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है?
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपन ही हरदम है?
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे सरमायें
यह महफ़िल कहने वालों को बड़ा भारी विभ्रम है।
सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की!
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।

बेनामी ने कहा…

Dear R Sharma ji
Congratulations for organizing this seminar at yr institution.The seminar has been very informative for the students and the researchers of Sabha.
These kinds of seminars and discussions will motivate the present generation to know more about the rich wealth of Indian literature.the spirit of nationalism is dieing away among the youth of modern day. Younger generation has already moved away from literature, we have a responsibility to re-create that lost interest for literature and fine arts plus performing arts.
M Venkateshwar.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

एक महान साहित्यकार और ईमानदार नेता के रूप में दिनकरजी का नाम हिंदी जगत में जगमगाता रहेगा। उनकी स्मृति में की गई इस गोष्ठी के लिए आपको तथा संस्था को बधाई।