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बुधवार, 11 नवंबर 2020

शुभाशंसा_'कोरोना काल की डायरी'_प्रो. गोपाल शर्मा





शुभाशंसा 
चाँदी के वर्क लगा आँवले का मुरब्बा 
- प्रो.  गोपाल शर्मा 

समाचारपत्रों के संपादकीय पाठकों को सूचना देने, जागरूक और शिक्षित बनाने के साथ साथ ही उनका मनोरंजन करने का दायित्व भी पूरा करते हैं। इसलिए इनके लेखक एक साथ ही पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता की भूमिका निभाते हैं। दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता में साहित्य ही नहीं, साहित्येतर लेखन के क्षेत्र में भी कई दशकों से प्रसिद्ध हो गए प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा की संपादकीय टिप्पणियों के पुस्तकाकार संकलनों का देश भर में जो स्वागत हुआ है, उसने ‘कोरोना काल की डायरी’ की प्रस्तुति के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। 

वैसे दूसरों की डायरी पढ़ना अशिष्टता माना जाता है, पर जब यह डायरी खुली किताब के रूप में पन्ना-दर-पन्ना ‘रोजनामचा’ के रूप में सामने आने लगे, तो पाठकों का ध्यान जाना स्वाभाविक ही है। कोरोना काल-चक्र में दिनचर्या की बोरियत को दूर करने के लिए ऑक्सीज़न के समान ग्रहण की गई इन टिप्पणियों का अब पुस्तक के रूप में आ जाना एक कड़ी को आगे बढ़ाता है। ‘कोरोना काल की डायरी’ का महत्व इस बात में है कि आप इनमें अपने अन्तर्मन की आवाज सुनने लगते हैं। ‘लोहे का स्वाद’ जिस प्रकार लोहार से नहीं घोड़े से पूछा जाता है, उसी प्रकार इन टिप्पणियों का स्वाद इसके पाठकों से पूछा जाए, तो मैं पाठक के रूप में उत्तर देते समय यही कहूँगा, ‘स्वादिष्ट और सुपाच्य’ । कुछ कुछ चाँदी के वर्क लगे आँवले के मुरब्बे सा मुफीद। चाँदी का वर्क इन वक्तव्यों के शीर्षकों के लिए कहा जा रहा है और यह कहना कोई अत्युक्ति भी नहीं। ‘तो कोरोना जी अच्छे है!’ से लेकर ‘ह्यूमेनिटी पर्सोनिफाइड’ तक जो भी शीर्षक हैं, वे यदि पाठक को आकर्षित करते हैं, तो समापन-पद अपनी अमिट छाप छोड़ता है। समापन काव्य-पंक्तियाँ इस छाप को गहराई और वैचारिक ऊर्जा प्रदान करती हैं, साथ ही हिंदी के पत्रकारिता विमर्श को नई परिभाषा प्रदान करती हैं। विषयों की विविधता यहाँ इस डायरी को कोरोना तक सीमित नहीं रखती। राजनीति और अर्थनीति से लेकर साहित्य और संस्कृति तक भिन्न-भिन्न विषयों को विचारार्थ प्रस्तुत करते समय कभी आप यहाँ ‘रिश्तों की सेहत के लिए वैक्सीन’ पर संवाद देखते हैं तो कभी शिक्षा और स्वास्थ्य पर। फ़ेक-न्यूज़ के घटाटोप में नीर-क्षीर विवेकशीलता दिखाते हुए समाचार की पृष्ठभूमि में जाकर यहाँ जो कुछ लिखा गया है वह तात्कालिकता से प्रेरित होते हुए भी सदा के लिए है। तब से अब तक का यह वक्तव्य तब और भी अधिक सामयिक प्रतीत होगा, जब कोरोना न रहेगा । तब इन वक्तव्यों को पढ़ा जाएगा जब अर्थव्यवस्था व्यवस्थित हो पटरी पर आ जाएगी। अब जब आप इन्हें पढ़ेंगे तो मेरी तरह यह भी देख लेंगे कि इस डायरी में काल अवश्य ‘कोरोना’ से ग्रस्त है, किंतु ‘क्रम’ और ‘कर्म’ नहीं। यह अबाध गति से नदी के समान प्रवाहमान है। 

प्रकाशोन्मुखी पत्रकारिता के सारस्वत यज्ञ में प्रत्येक समिधा का स्वागत है। मैं इस डायरी का सहर्ष स्वागत करता हूँ और कृतिकार का अभिनंदन भी। विविध रुचियों, दृष्टियों और विचारों को एक साथ साधती कोरोना-काल-डायरी के पुस्तक रूप में प्रकाशन के अवसर पर कवि-हृदय लेखक को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ! 



- गोपाल शर्मा 

पूर्व प्रोफेसर, अरबा मींच यूनिवर्सिटी 

अरबा मींच, इथियोपिया

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