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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

"सवाल और सरोकार" पर डॉ. सुषमा देवी की समीक्षा

 विचार और संवाद का सतत प्रवाह

       


       -डॉ. सुषमा देवी 

'सवाल'  मानव मन की जिज्ञासा के सूचक तंतु हैं, जो किसी उद्देश्य से ही अवतरित  होते हैं। सवालों के घेरे समयोचित विषयों से संदर्भित हों, तो उनकी प्रासंगिकता  और अधिक बढ़ जाती है। भारतीय लोकतंत्र के विविधता पूर्ण परिदृश्य को लेकर विचारवान व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में अनेक सवाल उठते रहते हैं, किंतु उन प्रश्नों को उठाने का जोखिम कम ही लोग कर पाते हैं। 'सवाल और सरोकार' प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी के संपादकीय लेखों का संग्रह है , जिन्हें लेखक ने सरोकारों के अनुसार समय-समय पर उठाया है। विचारों की सहज अभिव्यक्ति का वातावरण लोकतंत्र की नींव की सुदृढ़ता का आधार होता है। विचार एवं संवाद के सतत प्रवाह में स्वस्थ लोकतंत्र फलता-फूलता है । लेखक ने पत्रकारिता की राह से विविध सरोकारों से संबंधित परिनिष्ठित संपादकीयों के माध्यम से जन जागरण के महत् दायित्व का निर्वहन किया है। 

प्रस्तुत पुस्तक में विविध विषयों से संदर्भित लेखों में स्थानीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सजगता का गंभीर एवं विश्लेषणात्मक सवाल प्रस्तुत किया गया  है। पुस्तक को 8 खंडों में विभाजित किया गया है , जो अलग-अलग विषयों की क्रमबद्धता को सहज ही स्पष्ट करते हैं । खंड-एक  'सियासत की बिसात' में राजनीतिक सरोकारों से जुड़े सवाल हैं, जिनके समाधान तो नौ दिन चले अढ़ाई कोस ही सिद्ध होते हैं। खंड -2 में 'फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त' कश्मीर से संबंधित अनुत्तरित सवालों के जखीरे  हैं। खंड - तीन 'अगल-बगल ' में पड़ोसी देशों से भारत के संबंधों की पड़ताल की गई है। जबकि खंड - चार 'लोकतंत्र बनाम तंत्र' में जनता को लेखक द्वारा विवेचनात्मक दृष्टिकोण दिया गया है, ताकि वह एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण और परिमार्जन कर सके। खंड - पांच  'मंदी की मार बुरी'  में लेखक ने बेलाग सवाल प्रस्तुत किए हैं, क्योंकि देश का तथा मानवता का विकास अर्थतंत्र के इर्द-गिर्द घूमता है। खंड - छह 'समाज : आज' में लेखक ने भारतीय समाज की किंकर्तव्यविमूढ़ता तथा वैचारिक पिछड़ेपन को जीवंत प्रस्तुति दी है। खंड - सात  'पृथ्वी की पुकार'  में लेखक ने मानव से प्रकृति दोहन की अति आक्रामकता पर अंकुश लगाने का आह्वान किया है। खंड- आठ 'प्रलय की छाया'  में प्रकृति के तांडव को झेलने के लिए अभिशप्त मानव के लिए लेखक के मन में करुणा तो है ही, साथ ही इन सवालों के सरोकार को कई बार लेखक ने समाधानात्मक मोड़ भी दिए हैं।  निश्चित है कि पाठक ऐसे ज्वलंत सामयिक सवालों के सरोकार को पुस्तक 'सवाल और सरोकार ' के माध्यम से समझ सकेंगे । ●


समीक्षा - डॉ.सुषमा देवी, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, बद्रुका कॉलेज, हैदराबाद।

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