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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

'सवाल और सरोकार' की भूमिका: प्रो. गोपाल शर्मा


भूमिका

‘सवाल और सरोकार’ ऋषभ देव शर्मा के उन संपादकीय लेखों का संग्रह है जो उन्होने गत दिनों एक अग्रणी समाचार पत्र के लिए लिखे थे। पर जरा ठहरिए, बात इत्ती सी नहीं है। इनको इस रूप में प्रस्तुत करने का प्रयोजन है।

मनुष्य की आंतरिक प्रश्नाकुलता सनातन है, अनंत है। पर तमाम तरह की चिंताओं के जाल में उलझा हुआ आम आदमी कुछ कहने से डरता है। आजकल तो कुछ अधिक ही भयभीत रहता है। उसे पहरुए सावधान रहने को अवश्य कह रहे हैं किंतु राजनीतिक, सामाजिक, लोकतांत्रिक, धार्मिक और अनेक आर्थिक मुद्दों के प्रति जनप्रतिनिधि और जनता कितनी सजग है, यह जगजाहिर है। उनकी इस भोली सजगता को सहृदय संवाद से धार देते रहना भी बहुत जरूरी है। देश-दुनिया के सरोकारों को सवाल जवाब की शक्ल देते हुए प्रस्तुत करना भी संपादकीय दायित्व है।

पत्रकारिता को वृत्ति के स्थान पर प्रवृत्ति बनाकर प्रतिदिन अलस्सुबह एक ठो संपादकीय लिखकर अन्न-जल ग्रहण करने वाले ऋषभदेव शर्मा के इन आठ खंडों ( ‘सियासत की बिसात’, ‘फिरदौस बर रूये ज़मीं अस्त’, ’अगल-बगल’, ‘लोक बनाम तंत्र’, ’मंदी की मार बुरी’, ‘समाज: आज’ , ‘पृथ्वी की पुकार’ और ‘प्रलय की छाया’) में निबद्ध ललित-गद्यांकुरों को संपादकीय भर कहना नितांत अनुचित होगा। इधर कुछ वर्षों से सवालों के मुकाबिल तोप के द्वारा दागे जा रहे गोलों को क्रिकेट की गेंद की मानिंद खेलते रहने वाले अभ्यस्त बल्लेबाज ने फिर से 60 रन बनाए हैं। इसलिए इस आयोजन के पाठक अनुभव कर सकेंगे कि जब अनुभव और अनुभूति का समागम होता है, तो एक ‘पगली भीड़ में तब्दील होते हम’, ‘शीश-महल में भटके बच्चे’ पर किए गए सवालों का जवाब पा जाते हैं। उन सरोकारो से दो चार हो जाते हैं, जो न जाने वाली खतरनाक सच्चाई के साथ जीवन और जगत की कुछ खूबसूरत तस्वीरों को भी पेश कर देते हैं। इस तस्वीर में ‘उपराष्ट्रपति की पाठशाला के बिगड़ैल बच्चे’ एक तरफ हैं और युग बच्ची ‘युगनायिका ग्रेटा थनबर्ग’ दूसरी तरफ । तस्वीरों का एक कोलाज है– कितनी खूबसूरत यह तस्वीर है ! सरोकारों का एक जमावड़ा है– प्रदूषण की राजधानी । सवालों की संगत है – आंदोलन या अराजकता ? और यह इस आयोजन का प्रयोजन है– पूर्वापर संबंध का ध्यान रखते हुए सबके सरोकारों की सकल प्रस्तुति।

इस पुस्तक के सवाल और सरोकार हमारे समाज के हैं इसलिए ये सवाल और सरोकार लेखक के भी उतने ही हैं, जितने आपके और मेरे। विद्वान साहित्यकार और कवि के भीतर बैठा आम आदमी, अपने भीतर बैठे मनुष्य के सवालों और सरोकारों के प्रति चिंतन और चिंता करते हुए जब उकसता है, तो लिखता है। जो लिखता है,  वह चिंतन से ही नहीं चिंता से भी लिखता है। कहने में कोई हर्ज़ नहीं है कि कवि-मना लेखक ने अपने भीतर की उसी चिंता-चिंतन या देश को लांघकर विश्व तक जा पहुँचने वाली बेचैनी की ऊष्मा से सवालों के बीजों को अंकुरित करके सरोकारों के फल-फूल उगाए हैं। पाठक जब इनको पढ़ते हैं, तो बाहर की अस्तव्यस्तता और व्यवस्था तथा भीतर की बेचैनी की ऊष्मा से तुरत ही कभी नरम और कभी गरम हो जाते हैं।

समाचार पत्र के जिन नियमित–अनियमित पाठकों ने पहले ही इन टिप्पणियों को पढ़ लिया है, वे भी इस अनुक्रम को नए परिधान में देखकर फिर से उसी सोंधेपन का आस्वाद करेंगे, जो नए मिट्टी के सकोरे में परोसे हुए जल के समान उन्होंने पहले पहल प्राप्त किया था। आशा है कि इस पुस्तक के लेखक और पाठकों का पाठकीय पर्युत्सुकी भाव बना रहेगा। जो उत्सुक नहीं है,उत्कंठित नहीं है , आकुल-व्याकुल नहीं होता, अमन-चैन की बंशी बजा रहा है; वह क्या जानेगा ‘सवाल और सरोकार’ का स्वाद! तो फिर चला जाए आत्मबोध की यात्रा पर। 

विश्वास है यह संकलन भी पहले दो संकलनों के समान आपको रुचेगा। आगे आप जानें।

- प्रो. गोपाल शर्मा

अरबा मींच, इथियोपिया

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