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शनिवार, 22 सितंबर 2018

[रामायण संदर्शन] !! रीझत राम सनेह निसोतें !!

तुलसी के राम का स्वभाव अत्यंत कोमल है। उन्हें रिझाने के लिए बस एक ही योग्यता चाहिए। भक्त के हृदय में अगर सच्चा प्रेम है तो राम इतने दयालु हैं कि उसके सारे पापों और अपराधों का तुरंत शमन कर देते हैं और पापमुक्त करके अपनी शरण में ले लेते हैं। इसीलिए बाबा कहते हैं कि मेरे राम तो एकमात्र विशुद्ध प्रेम से ही रीझते हैं। यहाँ तक कि वे अपने भक्तों की भूल-चूक को याद तक नहीं रखते; अर्थात यदि कोई व्यक्ति निर्मल हृदय से राम की ओर आता है तो वे उसके सब अपराधों को क्षमा कर देते हैं। अब देखिए न कि जिस अपराध के लिए राम ने बालि को व्याध की तरह मारा था, बाद में वैसी ही कुचाल सुग्रीव ने चली और विभीषण की करतूत भी वैसी ही थी; परंतु राम ने उनके इन कृत्यों पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें अपने स्नेह और सम्मान का अधिकारी घोषित किया - राजसभा में भी उनके गुणों का बखान किया। यह बात विचित्र लग सकती है तथा पक्षपातपूर्ण भी। लेकिन राम की तो घोषणा ही यह है कि उनकी ओर उन्मुख होने वाले प्राणी को वे तुरंत पाप-मुक्त कर देते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि राम पापियों और अपराधियों की शरणस्थली है; बल्कि यह है कि जिसका चित्त निर्मल हो गया है और जो राम के प्रति विशुद्ध प्रेम रखता है; राम उसे अपना लेते हैं, अपने समान कर देते हैं। इसका बड़ा गहरा मनोवैज्ञानिक आशय है। यदि किसी व्यक्ति ने कोई महापाप कर दिया हो तो भी वह राम का कृपापात्र हो सकता है बशर्ते कि उसका प्रेम विशुद्ध हो। परम-प्रेम का ही दूसरा नाम भक्ति है न!000

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

(पुस्तक) प्राचीन भारत में खेल-कूद : स्वरूप एवं महत्व

अवधेश कुमार सिन्हा (ज. 9 सितंबर, 1950) की 68वीं वर्षगाँठ पर उनकी शोधपूर्ण कृति "प्राचीन भारत में खेल-कूद (स्वरूप एवं महत्व)" (2018. हैदराबाद : मिलिंद प्र.) का प्रकाशन/लोकार्पण हैदराबाद के हिंदी जगत के लिए अत्यंत हर्षकारी है।  अवधेश जी बहुज्ञ लेखक हैं। उनका वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण दृष्टिकोण उन्हें सतत अनुसंधाता बनाता है। एक स्वतंत्र जिज्ञासु शोधार्थी के रूप में रचित उनकी यह कृति भारतीय इतिहास और संस्कृति विषयक उनकी गहन अंतर्दृष्टि का परिचायक है।

सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक भारतीय समाज और उसकी संस्कृति को मनोविनोद और खेलकूद के साधनों और प्रकारों के क्रमिक परिवर्तन और विकास के माध्यम से उकेरने वाला यह ग्रंथ हिंदी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों तक भी पहुँचना चाहिए। आशा है, इसकी राष्ट्रीय उपादेयता को देखते हुए  विभिन्न भाषाओं के अनुवादक इस ओर आकृष्ट होंगे।