पुस्तक
चर्चा: ऋषभ देव शर्मा
सलीके से बखिया उधेड़ना
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आया राम गया राम का दुखड़ा
(हास्य-व्यंग्य संकलन)/ एम. उपेंद्र/ पृष्ठ – 124/ मूल्य
– रु.400/ 2014/ क्लासिक पब्लिशिंग कंपनी, नई
दिल्ली
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हैदराबाद
के वरिष्ठ व्यंग्यकार एम. उपेंद्र के चौथे हास्य-व्यंग्य संकलन ‘आया
राम गया राम का दुखड़ा’ (2014) में उनके 24 हास्य-व्यंग्यात्मक निबंध संकलित
हैं. सूचना, तर्क और हास्य-व्यंग्य से भरे हुए ये निबंध उन्होंने
विगत 30 वर्षों में विभिन्न समसामयिक विडंबनाओं से उद्वेलित होकर लिखे हैं. जैसा
कि स्वयं लेखक ने कहा है, ये निबंध मुख्य रूप से मनुष्य की रोजमर्रा की जिंदगी से
संबंधित हैं और इनमें व्यक्ति, परिवार, समाज और
राजनीति से जुड़ी ऐसी समस्याओं को उठाया गया है जिनका अनुभव प्रायः हर व्यक्ति को
होता है.
एम.
उपेंद्र यों तो अपनी रचनाओं में और व्यक्तिगत रूप से भी खूब बोलने बतियाने वाले
आदमी हैं लेकिन इस संकलन के पहले निबंध की भांति वे बोलने से पहले सोचने में यकीन
रखते हैं. एक मजेदार बात उन्होंने बताई हैं कि बिना सोचे बातें करने से ही हास्य
और व्यंग्य का निर्माण होता है. (पृ. 11). अब इस पर हमें कुछ नहीं कहना सिवाय इसके
कि हम तो उन्हें हास्य-व्यंग्यकार मानते हैं! इसी बात को उन्होंने एक और व्यंग्य
में खींचा है – प्रश्न करें सोच समझकर, जिसमें कई
चुटकुले भी पिरो दिए हैं. बोलने या कुछ पूछने से पहले सोचना दरअसल संभल संभल कर
चलना है. उपेंद्र जी बताते हैं कि हैदराबादी सड़कों पर संभलकर चलना और भी जरूरी है
क्योंकि यदि नौ महीनों की गर्भवती महिला ऑटो में बैठकर हमारी सड़कों पर निकले तो
सेफ डिलीवरी की पूरी गारंटी है. (पृ. 20). आशा है, आप समझ गए होने कि उपेंद्र जी
अपनी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य किस सहजता से उत्पन्न करते हैं. इस क्रम में ‘टालना
एक अच्छी आदत है’ (पृ. 21), ‘उधार माँगना भी एक कला’ (पृ. 27),’ वाह रे मेरी दाढ़ी’ (पृ. 56) और ‘यार हम भी भाषण दे सकते हैं’
(पृ. 70) शीर्षक निबंध भी कम चुटीले नहीं हैं.
हास्य-व्यंग्य
के लिए स्त्री विशेषकर पत्नी एक शाश्वत आलंबन है. ‘पछताना कंवारे रहकर’ (पृ. 33), ‘बाजार गए पत्नी के साथ’ (पृ. 66)
और ‘कौन औरत किसके पीछे’ (पृ. 116) इस दृष्टि से अवलोकनीय हैं. ‘स्कैनिंग काव्य
गोष्ठियों की’ (पृ. 93) और ‘लोकार्पण समारोह का मतलब’ (पृ. 100) साहित्यिक
समारोहों पर बढ़िया व्यंग्य है.
राजनैतिक
व्यंग्य के क्षेत्र में मूलतः अर्थशास्त्री मटमरी उपेंद्र जी अच्छी खासी पहचान
रखते हैं. इस संकलन में ‘यार हम भी भाषण दे सकते हैं’ (पृ. 71), ‘गिरगिट
राम की अपील’ (पृ. 79), ‘आया राम गया राम का दुखड़ा’ (पृ. 82), ‘भारत
भाग्य विधाता’ (पृ. 91), ‘न्याय’ (पृ. 106) और ‘समाजवाद’
(पृ. 111) में राजनैतिक परिवेश की बखिया बड़े सलीके से उधेड़ी गई है.
अंत में,
कुलमिलाकर हँसने और सोचने के लिए एक साथ मजबूर करने वाली किताब!
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