इधर कई वर्षों से जनवरी से लेकर मार्च तक इतनी संगोष्ठियों आदि में जाना पड़ रहा है कि कभी-कभी तो लगता है जैसे अपने छात्रों और शोधार्थियों के साथ अन्याय न हो जाय - इस अपराधबोध से बचने के लिए उन्हें अतिरिक्त समय देना भी मानो रूटीन बन गया है. लेकिन इन संगोष्ठियों को छोड़ा भी तो नहीं जा सकता - इसी बहाने अपनी कुछ मंजाई का मौका मिलता है. अभी पिछले दिनों कष्टकर बस-यात्रा के बावजूद धारवाड और बीजापुर की राष्ट्रीय संगोष्ठियां इस लिहाज़ से खूब फलदायी रहीं.
धारवाड में तो दो दिन (27-28 फ़रवरी, 2012) में आठ सत्रों में दूरस्थ माध्यम की शिक्षा पर लगभग प्रशिक्षण शिविर ही हो गया. फ्लाइटें कैंसिल होने के कारण कई विद्वान आ नहीं सके , लेकिन प्रो. दिलीप सिंह जी और प्रो. एम. वेंकटेश्वर जी ने प्रत्येक सत्र को अपने सटीक हस्तक्षेप से इतना परिपूर्ण बना दिया कि किसी की कमी कतई नहीं खटकी.
2 टिप्पणियां:
आ.ऋषभदेव जी,
द.भा.हि.प्र.सभा के सभी सदस्यों को बधाई | सुन्दर चित्र |
सादर
संपत
सफल और सुफल आयोजन के लिये बधाई..
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