सुभद्रा कुमारी चौहान कों समर्पित व्याख्यामाला में विशेषअतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा . साथ में संचालक डॉ. जी. नीरजा, अध्यक्ष प्रो. शुभदा वांजपे एवं मुख्य वक्ता डॉ. घनश्याम. |
15 फ़रवरी को ''खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली रानी थी'' की अमर रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान की पुण्यत्तिथि पड़ती है. इसीलिए गत 16 फ़रवरी 2012 को आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद ने अपनी मासिक व्याख्यानमाला उनके नाम समर्पित की. विषय रहा - ''सुभद्रा कुमारी चौहान का रचना संसार''.
मुख्य वक्ता डॉ. घनश्याम ने विषय के साथ न्याय किया और स्वतंत्रता संघर्ष काल की सारी हिंदी कविता के संदर्भ में सुभद्रा जी को एक अपरिहार्य सेनानी कवयित्री के रूप में व्याख्यायित करने के अलावा उनकी कहानियों की यथार्थपरकता की ओर भी ध्यान दिलाया. डॉ.घनश्याम ने सुभद्रा जी की समग्र रचनाओं को ओज, शृंगार और वात्सल्य के आधार पर बखूबी वर्गीकृत किया.
ऋषभदेव शर्मा ने विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुए सुभद्रा जी के प्रसिद्ध गीत ''वीरों का कैसा हो वसंत'' में निहित उदात्त तत्व का विश्लेषण करते हुए उसके पाठ में संयोजित ओज और संप्रेषणीयता के गुणों पर विशेष चर्चा की.
अध्यक्षता डॉ. शुभदा वांजपे ने की . उन्होंने अनेक उदाहरण देते हुए कवयित्री को स्त्री-रचनाकार और स्त्रीवादी-रचनाकार के रूप में देखने पर बल दिया.
डॉ. पी. माणिक्यांबा, डॉ. एम रंगय्या और डॉ. जी. परमेश्वरन ने टिप्पणी करते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान की तुलना महादेवी वर्मा से तथा तेलुगु के उस दौर के रचनाकारों से करते हुए यह सवाल भी उठाया कि उस काल में तेलुगु क्षेत्र में वैसी कोई कवयित्री क्यों नहीं उभरी.
आरंभ में अकादमी के अनुसंधान अधिकारी डॉ. बी. सत्यनारायण और डॉ. पी. उज्ज्वला वाणी के नेतृत्व में अतिथि सत्कार और दीप प्रज्वलन किया गया.
संयोजन-संचालन डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया. अप्पल नायुडु ने धन्यवाद व्यक्त किया (और यहाँ दर्शित फोटो भी खींचे). यह घोषणा भी की गई कि अगले महीने की व्याख्यानमाला उर्दू कवि मुहम्मद इकबाल पर केंद्रित होगी.
3 टिप्पणियां:
गोष्ठी की अच्छी रिपोर्ट व सुंदर चित्र के लिए आभार। अब न देश में वो माहौल रहा न जज़्बा जिसकी प्रेरणा लेकर कोई आज सुभद्रा कुमारी चौहान बन सके। आज तो बस देश खानों-खानॊं मे बंट रहा है :(
सब पूछ रहे हैं दिग दिगन्त...
कवयित्री के रूप में सुभद्राकुमारी चौहान का महत्त्व विशेषत: अपनी 'झाँसी की रानी' और 'वीरों का कैसा हो वसंत' सरीखी कविताओं के कारण तो अक्षुण्ण है ही, वह इसलिए भी अक्षुण्ण है कि आप सरीखे निष्पक्ष साहित्यप्रेमी उन पर गोष्ठियाँ और सेमिनार आयोजित करने की आवश्यकता महसूस करते हैं।
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