हैदराबाद, ८ फ़रवरी, २०१२.
कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) के प्रशासन भवन के समिति कक्ष में आज यहाँ ''हिंदी में विज्ञानं लेखन'' संबंधी कार्यशाला का आयोजन किया गया.
विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने ''विज्ञान लेखन में सहज एवं सरल हिंदी का प्रयोग'' विषयक सत्र कों संबोधित करते हुए कहा कि विज्ञान की भाषा को अर्थ-सम्प्रेषण के स्तर पर सरल होना चाहिए क्योंकि उसमें तार्किकता होती. वैज्ञानिकों द्वारा भाषा की उपेक्षा और अनुवाद पर निर्भरता को जटिलता का कारण मानते हुए डॉ. ऋषभ ने कहा कि विज्ञानं -लेखन के लिए विषय ही नहीं बल्कि भाषा कों भी वैज्ञानिक अर्थात तर्कयुक्त होना चाहिए. उन्होंने प्राचीन भारत में विज्ञान-लेखन की परंपरा की चर्चा करते हुए बताया कि १२ वीं शताब्दी में भास्कराचार्य - द्वितीय ने अपने ग्रंथ 'सिद्धांत शिरोमणि' में वैज्ञानिक भाषा के लिए सुबोधता, सटीकता, व्याख्यात्मकता, स्पष्टता, गाम्भीर्य और सोदाहरणता जैसे गुणों का निर्धारण किया था जिसे इस क्षेत्र में भारतीय विज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान माना जाना चाहिए.
कार्यशाला के दूसरे सत्र में प्रो. एम वेंकटेश्वर ने ''पारिभाषिक शब्दावली'' पर व्याख्यान देते हुए कहा कि विदेशी वैज्ञानिक शब्दों के हिंदी पर्यायों का चुनाव करते समय सरलता, अर्थ की परिशुद्धता और सुबोधता का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा सुधार्विरोधी व कट्टरवादी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए. उन्होंने वैज्ञानिकों कों लिप्यन्तरण और संक्षिप्तीकरण के स्तर पर भी एकरूपता और सरलता का ध्यान रखने की सलाह दी.
वरिष्ठ हिंदी अधिकारी आर. चंद्रशेखर के धन्यवाद-प्रस्ताव के साथ कार्यशाला का समापन हुआ.
3 टिप्पणियां:
भाषा के मानकीकरण में सरल हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान है, इस प्रकार के आयोजनों के लिये अतिशय बधाईयाँ
आज के वार्ता और मिलाप में इसका समाचार पढ़ा था सर जी॥
@प्रवीण पाण्डेय
इधर यह सरलता का मुद्दा फिर से इस तरह उछल रहा है कि जैसे मानक भाषा और पारिभाषिक शब्दावली ही सारी दुर्बोधता के लिए दोषी हों. दरअसल इस तरह पुनः अंग्रेजी शब्दावली कों सरल कहकर थोपने की साज़िश चल रही है. मेरा मानना है कि यदि लेखक कों विषय की अवधारणा स्पष्ट हो तो भाषा कभी सम्प्रेषण में बाधक नहीं होती.
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