अभी उस दिन डॉ. रेखा शर्मा ने हैदराबाद-दूरदर्शन के हिंदी पत्रिका कार्यक्रम चमेली के लिए बुला भेजा.[यह बात दरकिनार कि बहुतों को इस कार्यक्रम के नामकरण से विचित्र सी फीलिंग आती है.मुझे तो अपने हैदराबाद की दक्खिनी शायरी की व्यंजना का बोध होता है.] बुलावा आज की कहानी में प्रेम की बदलती अभिव्यंजना पर केंद्रित चर्चा के लिए था.शायद संयोजकों के अचेतन में वसंत पंचमी, वेलेंटाइन डे और होली के मौसम का ख्याल रहा होगा. खैर साहब, खूब भटकाव भरी चर्चा रही. भटके बिना प्रेम की बात हो भी कैसे सकती है. आज की कहानी को 'उसने कहा था' तक का बोझा उठाना ही था, सो उठाया. डॉ.शशांक शुक्ल [संपादक, परमिता] ने ठेठ आज के बढ़िया मुद्दे उठाए. डॉ. शुभदा वांजपे, डॉ. रेखा शर्मा और डॉ.दुर्गेश नंदिनी ने अपनी बातें सप्रमाण रखीं. अपुन ने तीन बिंदुओं पर जोर दिया - नई पीढ़ी को चाहे जितना केरियरिस्ट दिखाया जाता रहे, प्रेम की चाह और तड़प उसमें भी सदा के जैसी ही है; प्रेम, विवाह और सहजीवन के त्रिकोण में सहजीवन का कोण कहानीकारों को खास तौर पर उद्वेलित कर रहा है ; और कि प्रेम की दृष्टि से आज का समय बेहद असंवेदनशीलता, असहिष्णुता, अमानुषिकता एवं बर्बरता का समय है जिसमें कट्टरवाद के निशाने पर आया हुआ प्रेम फिलवक्त कहानीकारों की सबसे ज्यादा तवज़्ज़ो चाहता है. प्रोड्यूसर जनाब इम्तियाज़ साहब ने सारी गुफ्तगू का खूब मज़ा लिया और साथ खड़े होकर निजी कैमरे से यह फोटो भी खिंचवाया.
चित्र : इरफाना फातिमा
2 टिप्पणियां:
`मुझे तो अपने हैदराबाद की दक्खिनी शायरी की व्यंजना का बोध होता है.] '
हां जी, हमे तो ‘इक चमेली के मण्डवे तले’ कविता याद आ गई। प्रेम पर चर्चा तो सदियों से होती आई है और सदियों तक चलती रहेगी... शायद तब तक कि जब तक चमेली के मण्डवे सजते रहे :)
@cmpershad
जी, यह नाम बरबस मकदूम मोइनुद्दीन साहब की याद दिलाता ही है. आपने इशारा सही पकड़ा. थैंक्स!
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