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रविवार, 26 फ़रवरी 2023

(पुस्तक) 'तार सप्तक' के कवि और व्यंग्य





 शुभाशंसा


आधुनिक काल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बदलाव के अनुरूप हिंदी साहित्य में तेजी से अनेक बदलाव घटित हुए। इन बदलावों ने कई साहित्यिक आंदोलनों को भी जन्म दिया। साहित्य का यह तेजी से बदलता हुआ परिप्रेक्ष्य वास्तव में जनता की चित्तवृत्ति के साथ सामंजस्य बिठाने की साहित्यकारों की सजग चेष्टा का परिणाम है। विशेष रूप से हिंदी कविता के विषय और शिल्प में तेजी से बदलाव के मूल में इस चेष्टा को परिलक्षित किया जा सकता है। इस काल में एक बड़ा साहित्यिक बदलाव यह आया कि कविता ने रस की केंद्रीयता को नकारते हुए विचार की केंद्रीयता का वरण किया। इसके फलस्वरूप कविता में व्यंग्य का प्राधान्य प्रकट हुआ। यों तो एक शब्द-शक्ति के रूप में व्यंग्य को पहले से मान्यता प्राप्त है। लेकिन नए संदर्भ में उसकी अवधारणा नए सिरे से विकसित हुई। उसने समाज की कुरूपताओं और विसंगतियों को अनावृत करने की एक प्रणाली का रूप धारण कर लिया।


प्रस्तुत पुस्तक 'तारसप्तक के कवि और व्यंग्य (विशेष संदर्भ - अज्ञेय)' में 'तार सप्तक' के माध्यम से सामने आए कथित प्रयोगवादी काव्य-आंदोलन के पुरोधा 'अज्ञेय' के कृतित्व पर इसी दृष्टि से विचार किया गया है। यह पुस्तक व्यंग्य के अर्थ और स्वरूप का शास्त्रीय विवेचन करने के बाद हिंदी कविता में व्यंग्य की परंपरा का सर्वेक्षण करती है। इसमें 'तार सप्तक' के कवियों और कविताओं पर एक विहंगम दृष्टिपात करते हुए उनकी पड़ताल कथ्य और शिल्प के स्तर पर व्यंग्य के समावेश के निकष पर की गई है। ग्रंथकार डॉ. अंजु बंसल ने अज्ञेय की कविताओं में निहित व्यंग्य को सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवेश के संदर्भ में तो व्याख्यायित किया ही है, साथ ही, उसके साहित्यिक पक्ष को भी भली प्रकार उजागर किया है।


'तार सप्तक' के कवियों, विशेषतः अज्ञेय, की रचनाओं में निहित व्यंग्य का समग्र मूल्यांकन करने वाली यह कृति अनुसंधानकर्ताओं के साथ-साथ साहित्य के सामान्य पाठकों को भी रुचिकर प्रतीत होगी।


- प्रो. ऋषभ देव शर्मा

परामर्शी (हिंदी)

मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय

हैदराबाद

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