हैदराबाद, 1 अगस्त 2012.
यहाँ खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग में कल मंगलवार को 'प्रेमचंद जयंती' के अवसर पर अमर कथाकार प्रेमचंद की कहानी 'दूध का दाम' पर परिचर्चा आयोजित की गई. आरम्भ में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने प्रेमचंद की बहुमुखी प्रतिभा, व्यापक विश्व दृष्टि और कालजयी लोकप्रियता की चर्चा की. प्राध्यापक डॉ.मृत्युंजय सिंह ने प्रेमचंद का परिचय देते हुए उनकी कहानी 'दूध का दाम' का वाचन किया. अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी में उन्होंने कहा कि यह कहानी पाठक को भद्र समाज के दोगले आचरण के बारे में सोचने के लिए विवश करती है और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा देती है.
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्राध्यापिका डॉ. जी.नीरजा ने प्रेमचंद की कथा भाषा के सामाजिक पहलू की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि इस कहानी में साफ़ साफ़ दो भाषा रूप देखे जा सकते हैं - संपन्न वर्ग की भाषा और विपन्न वर्ग की भाषा. इसी क्रम में टी.उमा दुर्गा देवी, के.अनुराधा, बिमलेश कुमार सिंह, प्रतिभा मिश्रा, नम्रता भारत, के.अमृता और टी.परवीन सुलताना ने 'दूध का दाम' में निहित स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और सामाजिक यथार्थ पर अपने विचार प्रकट किए. प्रायः सभी वक्ताओं ने जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था के संदर्भ में भारतीय समाज में व्याप्त दोगले आचरण के प्रभावी चित्रण की दृष्टि से 'दूध का दाम' को उच्च कोटि की कहानी बताया. {प्रस्तुति : डॉ.जी.नीरजा}
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