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शनिवार, 30 जून 2012

कविता का समकाल : ऋषभ देव शर्मा की आलोचना कृति








3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कविता की गति को समझ सकना, उस पर लिख सकना सच में बहुत बड़ा कार्य है, आपको ढेरों बधाईयाँ..

Atulyya ने कहा…

बहुत उपयोगी है मेरे लिये... कृपया इसका PDF link भी दें...

akbar ने कहा…

सर, हमने आपकी कविताएँ सुनी हैं। आपकी कविता में आदमी और उसका समाज होता है। 'कविता का समकाल' यह पुस्तक मुझे पढ़नी है। आपकी कविताएँ मैंने सिर्फ़ ब्लॉग पर पढी हैं। विडिओ रूप में कल ही मैंने 'मृत्यु आती है' कविता सुनी। आपकी कविता मुझे अच्छी लगी।