साहित्य : सृजन और समीक्षा
साधुवाद शुभकामना, हे ! मन की दीवार ।सुषमा सुश्री मुक्तकें, चाँद लगाते चार ।चाँद लगाते चार, कहें प्रोफ़ेसर गोपी ।कवी होगा चालाक, भाव पर चाक़ू घोपी ।बहुत बहुत आभार, ऋषभ जो हमें जोड़ते ।प्रांत हैदराबाद, बड़ी बंदिशें तोड़ते ।।
साधुवाद शुभकामना, हे ! मन की दीवार ।सुषमा सुश्री मुक्तकें, चाँद लगाते चार ।चाँद लगाते चार, कहें प्रोफ़ेसर गोपी ।कवि रविकर चालाक, भाव पर चाक़ू घोपी ।बहुत बहुत आभार, ऋषभ जो हमें जोड़ते ।प्रांत हैदराबाद, बड़ी बंदिशें तोड़ते ।।
चालाकी देख कर भाव दूर दूर छिटक जाते हैं..
ekdam sahi kaha sir kahan chalaki aur kahan srijan
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4 टिप्पणियां:
साधुवाद शुभकामना, हे ! मन की दीवार ।
सुषमा सुश्री मुक्तकें, चाँद लगाते चार ।
चाँद लगाते चार, कहें प्रोफ़ेसर गोपी ।
कवी होगा चालाक, भाव पर चाक़ू घोपी ।
बहुत बहुत आभार, ऋषभ जो हमें जोड़ते ।
प्रांत हैदराबाद, बड़ी बंदिशें तोड़ते ।।
साधुवाद शुभकामना, हे ! मन की दीवार ।
सुषमा सुश्री मुक्तकें, चाँद लगाते चार ।
चाँद लगाते चार, कहें प्रोफ़ेसर गोपी ।
कवि रविकर चालाक, भाव पर चाक़ू घोपी ।
बहुत बहुत आभार, ऋषभ जो हमें जोड़ते ।
प्रांत हैदराबाद, बड़ी बंदिशें तोड़ते ।।
चालाकी देख कर भाव दूर दूर छिटक जाते हैं..
ekdam sahi kaha sir
kahan chalaki aur kahan srijan
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