डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी (1936) हैदराबाद के अत्यंत समर्पित वरिष्ठ हिंदी सेवी और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने कई दशक पूर्व उस समय पत्रकारिता में पीएच.डी. की थी, जब लोगों का इस विषय की ओर अब जैसा रुझान नहीं हुआ करता था. वे निरंतर सामाजिक परिवर्तन के लिए चलनेवाले आंदोलनों से भी संबद्ध रहे हैं और आज के समय में भी पत्रकारिता को व्यवसाय के बजाय जुनून से चलाते हैं.
‘राष्ट्रनायक’ हरिश्चंद्र विद्यार्थी के इसी जुनून का प्रतीक है. 41 वर्ष पुराने इस राष्ट्रीय विचारधारा के प्रतिनिधि पत्र के कई विशेषांक पत्रकारिता जगत में चर्चित हो चुके हैं. उसी परंपरा में अब हमारे सामने है ‘राष्ट्रनायक’ का ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेषांक’. संपादकीय में विद्यार्थी जी ने 21वीं सदी के मीडिया के प्रति असंतोष व्यक्त किया है. इसमें संदेह नहीं कि संचार व्यवस्था में आई क्रांति ने मीडिया के नए युग का सूत्रपात किया है और इसे बाज़ार के साथ नत्थी कर दिया है. यहाँ तक कि मीडिया को राष्ट्रीय एजेंडा निर्धारित करने वाली ताकत समझा जाने लगा है लेकिन हरिश्चंद्र विद्यार्थी जी इन सब बातों से अधिक महत्वपूर्ण इस सवाल को मानते हैं कि मीडिया भारत के आम लोगों की आवाज को बुलंद कर रहा है या नहीं. इस कसौटी पर जब वे आज के मुद्रित और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को देखते हैं तो इस बात से हताश होते हैं कि रेटिंग बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा और विज्ञापनों के माध्यम से पैसा जुटाने के कारण गंभीर तथा विश्लेषणात्मक कवरेज की उपेक्षा हो रही है. वे लक्षित करते हैं कि बाज़ार के दबाव के कारण मालिकों और प्रबंधकों की तुलना में संपादकों का महत्त्व नगण्य रह गया है. विद्यार्थी जी याद दिलाते हैं कि मीडिया की मुख्य संपदा विश्वसनीयता है और उसका अंतिम लक्ष्य जनता की सेवा है न कि मुनाफा कमाना.
दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता में डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी के ‘राष्ट्रनायक’ का स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह पत्र दक्षिण में हिंदी प्रचार-प्रसार के आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ा रहा है. हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को राष्ट्रभाषा और राष्ट्रलिपि के रूप में प्रतिष्ठित करने का संकल्प डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी ने महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रेरित होकर ग्रहण किया और उसे कार्य रूप देने में अपना जीवन लगा दिया. विद्यार्थी जी मानते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से हिंदी पत्रकारिता ने दोहरी भूमिका निभाई है. उसने एक ओर तो विभिन्न चेतनागत आंदोलनों को खड़ा किया तथा दूसरी ओर हिंदी भाषा को मानकीकृत और एकरूप बनाया. हिंदी पत्रकारिता ने खड़ीबोली आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किया जिससे पूर्वी और पश्चिमी प्रभाव से मुक्त मानक हिंदी को व्यापक स्वीकृति मिली. इसी प्रकार वे लिपि और वर्तनी के मानकीकरण में भी हिंदी पत्रकारिता की भूमिका को बार बार याद करते हैं. उन्होंने हिंदी पत्रकारिता के इतिहास का सावधानीपूर्वक आकलन करते हुए कहा है कि हिंदी पत्रकारिता का उद्भव किसी धुंधली भावुकता का परिणाम नहीं था बल्कि उसने नवजागरण की ऊर्जा को आत्मसात करके व्यापक जनगण को संप्रेरित किया. वे चाहते हैं कि आज की पत्रकारिता भी तमाम तरह के बाज़ारीकरण के दबावों के बीच जनता के प्रति अपना सामाजिक दायित्व न भूले.
‘राष्ट्रनायक’ का हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेषांक अत्यंत महत्वपूर्ण और संग्रहणीय बन पड़ा है. अपनी मान्यताओं के अनुरूप डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी ने जो सामग्री इस विशेषांक में प्रस्तुत की है वह राष्ट्रीय विचारधारा से किसी-न-किसी रूप में जुड़ी हुई है. इस विशेषांक में एक ओर पत्रकारिता के इतिहास का पुनरवलोकन किया गया है तथा दूसरी ओर स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता के बदलते आयामों के संदर्भ में आज की पत्रकारिता की दायित्वहीनता की खबर ली गई है. यह अंक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसमें दक्षिण भारत के हिंदी पत्रकारिता आंदोलन पर कई अत्यंत सूचनाप्रद निबंध संजोए गए हैं. इसमें संदेह नहीं कि दक्षिण की हिंदी पत्रकारिता में ‘राष्ट्र नायक’ को उल्लेखनीय स्थान दिलाने में इस विशेषांक का भी योगदान अविस्मरणीय रहेगा.
दक्षिण के वरिष्ठ हिंदी पत्रकार के रूप में डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी का यह सोद्देश्य और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकार-कर्म अभिनंदनीय है.
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