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शनिवार, 23 जून 2012

प्रेम बना रहे : ऋषभ देव शर्मा की 68 प्रेम कविताएँ


अरसे से मन में था कि एक किताब अपनी सहधर्मिणी डॉ. पूर्णिमा शर्मा जी को समर्पित करूँ , पर यह संकोच भी था कि पता नहीं उन्हें कैसा लगे - प्रेम को प्रदर्शित करने में सदा कंजूसी बरतने की अपनी फिलासफी के अनुरूप इसे भी प्रदर्शन और बडबोलापन न मान लें. फिर भी साहस करके गत चार मई 2012 को विवाह की 28वीं वर्षगाँठ पर  बेटे-बेटी से गुपचुप परामर्श करके ''प्रेम बना रहे'' की टंकित पांडुलिपि श्रीमतीजी के सामने धर दी. और सौभाग्यवश उन्होंने न तो रोष जताया और न ही उपहास किया ('प्रेम बना रहे' मेरा तकियाकलाम है न कुछ वर्षों से!). अर्थात प्रकाशन की स्वीकृति मिल गई. और अब वह कविता-संग्रह छप कर आ गया है, प्रकाशित हो गया है.

''प्रेम बना रहे'' में मेरी 68 प्रेम कविताएँ हैं; या कहें कि प्रेम पर केंद्रित कविताएँ हैं. ये कविताएँ अलग अलग समय पर लिखी गई हैं - अलग अलग काव्यरूपों में. यों तो इनमें से कुछ कविताएँ अंतरंग गोष्ठियों में और मित्रों के बीच पसंद की गई हैं, कुछेक यत्र तत्र छपी भी हैं - परंतु अधिकतर ऐसी हैं जो डायरी के पन्नों से पहली बार बाहर आई हैं. अवलोकनार्थ विवरण के अलावा ऑनलाइन संस्करण का लिंक यहाँ सहेज रहा हूँ.

पुस्तक का शीर्षक -   प्रेम बना रहे 
विधा - काव्य [प्रेम कविताएँ]

प्रकाशक -
 अकादमिक प्रतिभा, सरस्वती निवास,
 यू-9, सुभाष पार्क, नज़दीक सोलंकी रोड, उत्तम नगर, 
नई दिल्ली - 100 059.  फोन : +91 9811892244.

प्राप्ति स्थान -
 डॉ. ऋषभ देव शर्मा, 208 - ए, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स, 
गणेश नगर, रामंतापुर, हैदराबाद - 500 013 . 
फोन :  +91 8121435033.

प्रथम संस्करण : 2012.
पृष्ठ संख्या -120 .
मूल्य - :INR  250/=

आई एस बी एन : 978-93-80042-59-6.

2 टिप्‍पणियां:

Kavita Vachaknavee ने कहा…

अनंत बधाई, शुभकामनाएँ और मुबारक।
एक वर्ष में दो काव्यसंग्रह छपना बड़े हर्ष का विषय है।

दोनों संग्रह यशदायी हों।
शीघ्र ही पढ़ूँगी।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पढ़ते हैं जाकर, कुछ सीख मिल जाये, जिससे हमारा भी बना रहे...