||गुरु-पूर्णिमा||
यों तो माता-पिता-गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किसी तिथि-वार-पर्व की ज़रूरत नहीं, पर 'गुरु पूर्णिमा' मेरे लिए बचपन से ही रोमांचकारी उत्सव रहा है. माता-पिता-गुरु ने कभी मुझे उपदेशा नहीं, पर माता-पिता ही अपने दैनंदिन जीवन के माध्यम से मेरे गुरु बन गए. जाने किस गुरु-पूर्णिमा पर पित्ताजी का 'गौरव' देखकर तय कर लिया कि किसी और को 'गुरु' नहीं कहना है. पिताजी को तुलसी का गुरु-वंदना प्रसंग अतिप्रिय था; मुझे भी है. पर विचित्र बात यह है कि जब-जब कबीर को पढता-पढाता हूँ तो हर दोहे में पितु-वचन की साखी का बोध होता है.
सतगुर हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग |
बरस्या बादल प्रेम का ,भीजि गया सब अंग ||
4 टिप्पणियां:
सच में।
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा ......जिनसे कुछ भी सीखा सभी को नमन !
आदर्श माता-पिता मिलने का यही तो सौभाग्य होता है कि बच्चे भी उन आदर्शों पर चलने लगते हैं अनायास ही॥
is prakriti se jo kuch bhi sikhane ka prayas kiya hai uska bandan
एक टिप्पणी भेजें