साठये महाविद्यालय, मुंबई में तीन दिन की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में जाना हुआ तो ख़ास तौर से प्रो.गोपेश्वर सिंह के आग्रहवश तीसरे दिन संक्षिप्त सा मुंबई-दर्शन भी हो गया. फिलहाल पाँच-दिनी दिल्ली यात्रा की हबड़-दबड़ में हूँ, सो, संगोष्ठी और दर्शन पर बाद में ही कुछ लिखा जा सकेगा.
इस वक्त तो बस इतना कि चार दिसंबर को जब होटल ताज के सामने कुछ मिनट चहलकदमी की तो चिलकती धूप में पसीने-पसीने हो गए. प्रो.दिलीप सिंह तो तरबतर थे. अपनी खोपड़ी से पसीना पोंछते हुए प्रो.गोपेश्वर सिंह ने मेरी तोंद को लक्ष्य किया था - ये! गणेश जी को पसीना नहीं आता क्या? मैं सदा की तरह बिना जवाब दिए मुस्करा दिया था.. डॉ. महात्मा पांडेय ज़रूर ज़ोर से हँसे थे.
3 टिप्पणियां:
imतीन से तो परिचित हैं... चलो आज डॊ. पाण्डेय जी से भी परिचय हो गया :)
ताज वाले चित्र में तो आप जुलाई से दोगुने प्रतीत हो रहे हैं। कभी-कभी कैमरा कमाल दिखा देता है। प्रोफेसरद्वय आदरणीय डॉ. दिलीप सिंह जी व डॉ. गोपेश्वर सिंह जी को मेरा नमस्कार प्रेषित करिएगा। धन्यवाद।
आपका चित्र देख कर अच्छा लगा .आपका विघ्नहर्ता(गणेश) नाम ठीक ही तो है ,
प्रथम स्मरणीय हों ,बधाई !
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