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गुरुवार, 19 अगस्त 2010

‘अक्षरा’ साहिती सांस्कृतिक सेवा पीठम् : लोकार्पण समारोह


हैदराबाद, 30 जुलाई, 2010 (प्रेस विज्ञप्ति)
‘अक्षरा’ साहिती सांस्कृतिक सेवा पीठम्, राजमंड्री के तत्वावधान मंे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सभाकक्ष में डॉ. पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव द्वारा संपादित और रचित दो कृतियों का लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ।
स्वतंत्र वार्ता के संपादक डॉ. राधेष्याम शुक्ल ने ‘आलूरि बैरागी की कविताओं में मानवतावाद’ नामक पुस्तक का लोकार्पण किया, जबकि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो. दिलीप सिंह ने ‘डॉ. हरिवंषराय बच्चन’: एक अनुषीलन’ नामक पुस्तक का लोकार्पण किया।
इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. दिलीप सिंह ने कहा कि आलूरि बैरागी और बच्चन दोनों ही ऐसे साहित्यकार हैं जो अपने समय में तो प्रासंगिक थे ही, वर्तमान समय में भी हमें रास्ता दिखा सकते हैं इसलिए उनकी रचनाओं पर आज के संदर्भ में पुनर्विचार अत्यंत आवष्यक है। डॉ. दिलीप सिंह ने आगे कहा कि विमोचित कृतियाँ इस दिषा में दक्षिण भारत के हिंदी अध्येताओं का स्तुत्य प्रयत्न है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें महान कवियों के पुनर्पाठ की ओर जाने की आवष्यकता है, ताकि आज के समय से उनकी तुलना की जा सके। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद व प्रसाद के कार्यों का पुनर्पाठ किया गया है तथा इससे कई नई बातें सामने आयी हैं। उनकी रचनाओं की तस्वीर तक बदल गई है। उन्होंने कहा कि रचना अपने काल से बाहर निकल भविष्य में जाने की क्षमता रखती है और पुनर्पाठ इसका अच्छा माध्यम है। उन्होंने कहा कि कविता नदी की धारा की तरह होती है, जो हर युग में बहती रहती है। उन्होंने आलूरि बैरागी की रचनाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आलूरि काफी वर्षों तक बिहार में रहे हैं और उनकी रचनाओं में उस क्षेत्र का प्रभाव देखने को मिलता है। उन्होंने श्रीनिवास राव द्वारा ‘बच्चन’ व आलूरि बैरागी पर पुस्तक लिखने के लिए बधाई दी।
अध्यक्षासन से संबोधित करते हुए स्वतंत्र वार्ता के संपादक डॉ. राधेष्याम शुक्ल ने कहा कि आलूरि बैरागी और ‘बच्चन’ दोनों का ही जीवन बड़ा संघर्षमय रहा जिसका प्रतिबिंब उनकी कविताओं में झलकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन दोनों रचनाकारों के साहित्य का केंद्र बिंदु मनुष्य है और इसी दृष्टि से इनका समग्र मूल्यांकन करने के कारण विमोचित कृतियों का प्रकाषन प्रषंसनीय है। डॉ. शुक्ल ने आगे कहा कि सही रचनाकार वही होता है, जिसकी दृष्टि भविष्य पर होती है, इसलिए रचनाकार को भविष्य को ध्यान में रखते हुए रचना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि रचना के मूल्यांकन से हमें प्रेरणा प्राप्त होती है तथा इसके लिए हमें अपने इतिहास पर दृष्टि डालने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि रचनाकार के विचार उसकी रचनाओं में अभिव्यक्त होता है, वही श्रीनिवास राव के साथ भी हुआ है तथा उनकी रचनाओं में उनकी विचारधाराओं का प्रभाव साफ देखने को मिल रहा है। उन्होंने श्रीनिवास राव से भविष्य में भी इसी प्रकार की रचनाएँ रचने का आग्रह किया।
लोकार्पित पुस्तकों की समीक्षा करते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि पेरिसेट्टि श्रीनिवास राव की साहित्य दृष्टि का मूलबिंदु मानवतावाद है तथा इन दोनो कृतियों के लेखक और संपादक के रूप में उन्होंने साहित्य को व्यापक मानव समाज के लिए श्रेयस्कर बनानेवाले तत्व को विषेष रूप से उभारा है। डॉ.शर्मा ने भाषा वैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह के शोध पत्र ‘रचनात्मक उद्बोधन है अनुवाद: कवि बच्चन’ को बच्चन के सर्वांगीण मूल्यांकन की दिषा में महत्वपूर्ण कदम बताया। दोनों पुस्तकों की समीक्षा करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि आलूरि बैरागी आंध्र के एक प्रतिष्ठित हिंदी कवि थे, जिनकी कविताओं में छायावाद, प्रगतिवाद व प्राकृतिवाद का प्रभाव देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि डॉ. श्रीनिवास राव द्वारा बैरागी पर लिखित पुस्तक में मनुष्य और मनुष्य के बीच की बढ़ती खाई के बारे में चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि बैरागी की तुलना निराला व मुक्तिबोध से की जाती है।
इस अवसर पर आंध्र प्रदेष हिंदी अकादमी से पधारे प्रो. बी. सत्यनारायण एवं साहित्य पत्रिका ‘संकलय’ के संपादक प्रो. टी. मोहन सिंह ने पी. श्रीनिवास राव के कृतित्व की प्रषंसा करते हुए शुभाषंसा व्यक्त की।
आरंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्वलन द्वारा कार्यक्रम का उद्घाटन किया तथा पी. तन्मय और कोसनम नागेष्वर राव ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। अतिथियों और सहयोगी लेखकों के सत्कार के साथ डॉ. पी.श्रीनिवास राव ने ‘अक्षरा’ का परिचय दिया। लोकार्पण कृति की प्रतियाँ श्रीमती सीतादेवी और तन्मय ने स्वीकार की। इस अवसर पर लेखक का सारस्वत सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का संयोजन प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू, अध्यक्ष उच्च षिक्षा और शोध संस्थान, एरणाकुलम ने किया।
लोकार्पण समारोह को सफल बनाने में प्रो. एम. वेंकटेष्वर, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. वेमूरि हरिनारायण शर्मा, डॉ. जी.वी. रत्नाकर, डॉ. शेषुबाबु, डॉ. श्याम संुदर, डॉ. पी.आर. घनाते, डॉ. सीतानायुडु, डॉ. संजय, डॉ. शक्तिकुमार द्विवेदी, डॉ. शषांक शुक्ल, डॉ. मृत्यंुजय सिंह, डॉ. जी. नीरजा, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. साहिराबानू, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, श्रीमती ज्योत्स्ना कुमारी, एस.के. हलेमनी, श्रीधर, रामकुमार, वेंकटेष्वर राव, ए.जी. श्रीराम, गौडर, जुबेर अहमद, शंकर सिंह ठाकूर, अनुराधा जैन, मंजुषर्मा, इंदुमति, डॉ. रविचंद्र राव, ऋषि मामचंद्र कौषिक, अखिलेष, उमादेवी सोनी, ज्योतिनारायण, लक्ष्मी बाई, सुरेष, चेंचाराव, रामकृष्ण, रवि तथा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रचारकगण की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। राष्ट्र गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

[प्रस्तुति- डॉ. पी. श्रीनिवास राव]

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आलूरी जी आंध्र के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। उन पर पुस्तक के विमोचन की हार्दिक बधाई। इस रिपोर्ट के लिए आभार॥