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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

औरतें औरतें नहीं हैं

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ek ek pankti sahii haen kavitaa nahin sach haen jiska saamna karna kathin haen .

text form mae mujeh email kardae naari kavita blogpar post karnae kae liyae

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव लिये हुये कविता........सुन्दर

L.Goswami ने कहा…

achchha likha aapne...dukhad hai par sach hai.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बहुत बढिया, बहुत सार्थक। पर क्या हमारे नेता लोग पढे़-लिखे हैं जो इस कविता को समझ सकें, इस देश का दर्द समझ सकें, अपनी संस्कृति और सभ्यता की अस्मिता को समझ सकें???????????
बधाई ...इस मन को छूने वाली कविता के लिए!